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________________ ''अपलक दृष्टिसे खाध्यायकरनेपर/पाठकोंको इस काव्यमें कई स्थलोंपर कुछ पुनरुक्किएँ भी प्रतीत होंगी, परन्तु प्रत्येक शब्द और शब्द-खामी गणधरन देवके वाक्यका तुलनात्मकदृष्टिसे मनन करनेपर तत्वका सम्पूर्ण और सर्वाङ्ग रहस्य इस प्रकार सरलतासे समझमें आता है कि गणधरभगवान्का मुख्य आशय प्रत्येक शब्द और अर्थमें कितना भिन्न और स्पष्ट है। " : इस काव्यमें भगवान् सुधर्माचार्य अपने अन्तेवासी शिष्य जम्बूको यह बताते हैं कि शासननायक-चरमतीर्थङ्कर-जगदुद्धारक-श्रीमहावीरयोगीन्द्रचूडामणिके ज्ञान दर्शन और चरित्र आदि गुण किस प्रकारके थे, उन गुणोंकी तुलना जगत् मेरकी सर्वोत्तम सारभूत वस्तुओंके साथ करके प्रभुका महत्व बताया गया है । ' खाध्यायप्रेमी महानुभावोंके सन्मुख श्रीमद्गणधरोंके परमसुन्दर और हितरूप आशयके साथ मिलते जुलते भाव तथा अन्यान्य अध्यात्मरसिक आचार्य और कविकोविदोंके आशयोंका भी इस विवृतिमें समन्वय किया है और जिसमें जैन तथा जैनेतर अन्योंको स्थान देते समय किसी प्रकारका भेद नहीं रक्खा है। यह निर्विवाद और अपने आप सिद्ध है कि इस काव्यका मूल और शिखा दोनों ही अध्यात्मरसमें परिसिन्चित हैं क्योंकि गणघरपदविराजित महान प्रभावशाली श्रीसुधर्माचार्य भगवान्की तो यह कृति है, और मनुष्यमा त्रको अपने जीवन में अपने आत्माके ऊपर अध्यात्मविषयक प्रभाव डालनेके लिये इस प्रकारके उत्तमोत्तम पाठोंको सदैव बोलते रहनेका अभ्यास रखनेकी तथा उसके तत्वमयभावार्थको समझनेकी भी अत्यन्त आवश्यकता है, अतः इसी मूल भाशयको लेकर इस महान् एवं स्तुत्य अध्यायको यथामति यथाशक्ति एवं यथानुभव संस्कृतविकृति तथा भाषानुवादसे समृद्ध किया है। इसका एक मुख्यकारण यह भी है कि हमें भगवान् महावीर प्रभुकी देन है और उसे उनके तत्वको संसारके कोने कोने तक पहुंचाकर ही पूरा किया जा सकता है। और मातृभाषामें सर्वसाधारण जनताको तत्ववोध और उसका अन्तर्भाव समशानेकेलिये उसके सरलातिसरल भाषान्तरकी भी बड़ी आवश्यकता है। इन्हीं भावोंको लेकर इसका गुर्जर-अनुवाद भी कलकत्ता निवासी श्रीक्षेमचंद श्रावकसे कराया है, और उन्होंने भी इसका गुर्जरगिरामें खतन्त्र अनुवाद किया है। यदि कदाचित यह निपुटी जैनसमाज तथा प्राणीमानके लिए शुद्ध उपयोगी हो
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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