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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
'कैश्चित्तु ब्राह्मणा दशधा प्रोक्तास्त एवम्' यथा-देवो द्विजो मुनी राजा, वैश्यः शूद्रो बिडालकः ।
खरो म्लेच्छश्च चाण्डालो, विप्रास्तु दशधा मताः ॥ १॥ देवः-एकाहारेण सन्तुष्टो, मद्यमांसविवर्जितः ।
पारीणस्तत्त्वविज्ञाने, स विप्रो देव उच्यते ॥१॥ द्विजः-यामिको नियमी चैव, संयमी संयतेन्द्रियः ।।
समो दमक्षमायुक्तो द्विजो विप्रः स उच्यते ॥१॥ मुनिः-रक्षाऽऽहारी दिवाहारी, वनवासे रतः सदा।
कुरुतेऽहर्निशं ध्यानं, स विप्रो मुनिरुच्यते ॥ १॥ । नृपः -अश्वादिवाहनेच्छुर्यो विग्रहे चातिवर्तते ।।
आरंभः शासकः शूरः, स विप्रो हि नृपः स्मृतः ।। १ ।। वैश्यः-कृषिवाणिज्यगोरक्षां, न्यायं सेवां करोति यः।
धातूनां संग्रही नित्यं, स विप्रो वैश्य उच्यते ॥ १ ॥ सुखविपाकमें सुखविपाकवालोंके नगर, उद्यान, पनखंड, राजा, मातापिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इसलोक परलोक सम्बन्धी ऋद्धि विशेष, भोगपरित्याग, प्रव्रज्याग्रहण, श्रुतपरिग्रह, तप, उपधान, पर्याय, प्रतिज्ञा, संलेखना, आहारपानीका त्याग, पादपोपगमनसंस्तारक, देवलोकगमन, सुकुलावतार, बोधिलाम और अन्तकिया तकका अनुक्रमसे वर्णन है। इसमें २० अध्याय हैं। २० उद्देशनकाल हैं, २० समुद्देशनकाल हैं। और संख्यात लाख अर्थात् १, ८४, ३२००० पद संख्या है।
दृष्टिवादः-दिठिवाएणं, सव्वभावपरूवणया, माघविनंति से समासो पंच विहे पण्णते, तं जहा-परिकम्मं, सुत्ताई, पुव्वगयं, अणुओगो, चूलिमा, ।,
रष्टिवाद-इसमें सब पदार्थों की प्ररूपणा है, और वह दृष्टिवाद परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, (पूर्व) अनुयोग और चूलिका इन मेदोंसे ५ प्रकारका कहा है।