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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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ज्यारा मातपिता खर्गति लह्याए, पुनी लियो संयम भार। तपसा कीधी आकरी, साढा बारह वर्ष मझार, ॥ ३ ॥ नव चौमासी तप कियो, इक कियो ज्मासी । पांच दिन ऊणा अभिग्रह । षट मास विमासी । एक एक मासी तप कियो, प्रभु द्वादश विरिया। वहत्तर पक्ष दोय २ मास छविरिया करियां। दोय अढाई दिन दोय ए वली डोढमासी दोय । भद्र-महाभद्र शिवभद्र तप करी, इम सोलह दिन होय, ॥ ४ ॥ मिक्खुनी पडिमा अष्ट भकिनी द्वादश कीनी । दोयसे ने गुणतीस छठम तप गिनती लीनी । ग्यारह वर्ष छमास पचिस दिन तपसा केरा । ग्यारह मास उगणीस दिवस पारणा भलेरा । इन विधि खामी तप कियोए पछी उपज्यो केवलज्ञान । तीस वर्ष ऊणां विचरिया, ते प्रणतूं वर्धमान, ॥ ५॥ प्रथम 'अस्थि' बीजो 'चम्पा' दो कहिए, 'वैशाला' ने 'वाणिज' दो मिल। द्वादश लहिए । चतुर्दश 'नालंदे' पाडे 'मिथिला' छभणिया, 'भद्दलपुरमें दोय, सबे मिल अडतिस गिणिया । एक 'मालंभिका' एक 'सावत्थी', एक अनार्य में जाण, चरमचौमासो ‘पावापुरी' जहा पहुंचे निर्वाण ॥ ६ ॥ मुनिवर चवदे सहस, सहस्र छत्तीस आर्यिका, इकलख गुणसठ सहस्रश्रावक, तीनलाखश्राविका, अधिक अठारह सहस ग्यारह गणघर की माला, गोतमखामी शिष्य वडा, सती चन्दनवाला । ज्यारे केवलज्ञानी सातसौ, प्रभु पहोंचे निर्वाण । शासन वर्ते खामीनो, अब्द इकिस सहस्र प्रमाण ॥७॥ पूर्वी तीनसो धार, तेरासौ अवधि ज्ञानी, मन पर्यय पाचसे जान, सातसौ केवलज्ञानी ॥ विक्रिया लब्धिरा जान, सातसो मुनिवर कहिए । वादी चारसौ बडे, भिन्न भिन चरचा लहिए ॥ एकाकी चारित्र लियो, एकाकी निर्वाण । चौसठ वर्ष तक चालियो, दर्शन-केवल ज्ञान ॥ ५ ॥ वारह नरवल वृषभ, वृषभ दश ज्यों ए हय वर, बारह हय एक महिष, महिष पांचसौ सु गयवर। पांचसे गज हरि एक, सहस हरि इक अष्टापद, दश लख अष्टापद एक राम, दोय राम एक वासुदेव । दोय वासुदेव एकचक्री, क्रोड चक्री इक सुर लियो, कोडी सुरां इक इंद अनन्तासुं नहीं नमे, चिट्टी अगुली अग्र जिनेंद्र ॥5॥ आप तणा प्रमु गुण अनन्त, कोई पार न पावे, लब्धि प्रभावे कोडि, काय कोडी सीस बनावे। सिर २ कोडा कोडी वदन, कोड कोड जिभ्यानी, जिभ्या २ सुं कोड २ गुण करे सुज्ञानी । कोडा कोडी सागर लगेए, करे ज्ञान गुण सार । आपतणां प्रभु गुण अनन्त, कोई कहत न आवे जी पार ॥ १० ॥
वीर. १९