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२८८ : वीरस्तुतिः।' -.. मंडणा, विनय विवेक घी घाल ॥ ३० ॥ क्षमारूपी खाजला करो, वैराग्य घृत । भरपूर, उपशम भौण घालने, शुद्धमन मोतीचूर '॥ ३१ ॥ भाव दिवाली इम करो, उतरो भवजल पार, जप तप सेवा भावसुं, लाहो ल्यो तुमलारः ॥ ३२ ॥ दीवाली दिन जाणिने, धन्य निजघर माहीं, धर्मध्यान मनआदरो, अजर अमर पद पाही ॥ ३३ ॥ पूजे दिवाली ने दिने, वही लेखनी मसीपात, एम ज्ञानने पिण पूजजो, वाधे पुण्यना ठाठ ॥ ३४ ॥ पर्व दिवाली जाणिने, उजलावे घर हाट, इम तुम व्रत उज्वालजो, दीपे अधिकी बात ॥ ३५ ॥ घर कुटुंब धन बालका, जिम वाल्हा लागे तोय, तैसो नेह करो धर्मसुं, ज्यों मुक्ति सुख होय ॥ ३६ ॥ जाग्या थकां खुटका करे, तो वोलो मतिरात, जो असंयति जागसी, करसी छ कायानीघात ॥ ३७॥ ध्यान खाध्याय भली करो, गुणो वोल ने चाल, आजनो दिनछे मोटको, दीवालो मत घाल ॥ ३८॥ पर्व दिवाली जाणने, सार पाशा मत कूट, धर्मध्यान ध्याओ सदा, नफो धर्म नो लूट ॥३९॥ चैत्र सुदी तेरस दिने, जनम्या श्री वर्धमान, कार्तिक वदी अमावस्यां, पाम्या मोक्ष निदान ॥ ४० ॥ मनुष्य जन्म छे दोहिलो, पाम्यो आरज खेत जोग मिल्यो साघा तणो, चेत सके तो चेत ॥४१॥ सेवाकरो सुगुरु तणी, गाओ ज्ञान घन घेर, दोय घडी शुद्ध भावमुं, "नवकरवाली फेर ॥ ४२ ॥ अंग, उपांगने छेदमें, जीव दया व्रत पाल । तातें ऋषि जयमल कहे, इसी दिवालीने मान ॥ ४३ ॥
(महावीर स्तवन) .: वीर जिनेन्द्र शासन धणी, जिन त्रिभुवनखामी । ज्यारे चरण कमल चित नित धरूं, प्रण सिरनामी। सुर स्थिति नगरी पिता मात चिन्ह अवगाहना, वर्ण आयु पुनी कुमरा,पद तपका परमाना । चरित्र वल प्रभु गुण धणा है छठमत्य, केवल 'ज्ञान, तीर्थ गणधर केवली जिन शासन परमाण ॥१॥ देवलोक दशवें वीस सागर पूर्णस्थिति पाए, कुन्डनपुर नगरी में चवी श्री जिनवर आए। पिता सिद्धार्थ पुत्र, मात त्रिशलादेवी नन्दा, जननी कुक्षिमें अवतरे श्रीवीर जिनन्दा । ज्यारे चरण लक्षण सिंहनोए अवगाहना कर सात; तन कंचन करी शोभता, ते प्रणम,जगनाथ, ॥२॥ बहुतेर वर्षनो आऊषो । पायों सुखकारी,, तीसवर्षकेवलंपदे रह्या. अभिप्रह धारी । उपसर्ग परिषहँ सहन करत पुनी शमरस भीनो, अनन्तवली भगवन्त जान वीर नाम जु दीनो,