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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता २१३ इन चारों भंगोंमें पहलेके तीन,भंग साधुके लिए अशुद्ध अर्थात् प्राह्य नहीं हैं, और अन्तिम शुद्ध भंग ग्राह्य है। ___ द्रव्य और भावकी अपेक्षासे भी रात्रिभोजनके चार भंग वन जाते हैं। जैसे-केवल द्रव्यसे, केवल भावसे, द्रव्य और भाव दोनोंसे, तथा द्रव्य और भावसे रहित। सूर्योदय या सूर्यके अस्तका सन्देह होनेपर भी भोजन किया जाता है, वह केवल द्रव्यसे रात्रि भोजन है भावसे नहीं है । “में रातमें भोजन करूं" ऐसा विचार हो जाय और खाया पिया कुछ नहीं है तब वह केवल भावसे रात्रि भोजन है, द्रव्यसे नहीं। बुद्धि काम करते हुए भी रात्रिमें आहार कर लेना, यह द्रव्य और भाव दोनोंसे है और न रात्रिमें भोजन करना न करने की अभिलाषा ही खडी करना यह द्रव्य और भावसे रहित भंग है।
बुद्धोंके आठ उपदेशोंमें भी रात्रिभोजन वर्जित है, जैसे१ 'पाणातिपाता' वेरमणि सिक्खापदं 'समा दियामि' । २ 'अदिन्नादाना' वेरमणि सिक्खापदं समा ‘दियामि। ३ 'अब्रह्मचारिया' वेरमणि सिक्खापदं समादियामि । ४ 'मुषावादा' वेरमणि सिक्खापद समादियामि । ५ 'सुरामेरय-मज्झ-पमादठाना' वेरमणि सिक्खापदं समादियामि । ६ 'विकालभोजना' वेरमणि सिक्खापदं समादियामि ।
७ 'नच्चगीतवादित विसुकदस्सन माला गन्धविलेपनधारण, मंण्डन भूपणठाना' वेरमणि सिक्खापदं समादियामि । ८ 'उच्चाशयन, महाशयना, वेरमणि सिक्खापदं समादियामि ।
भावार्थ में किसी प्राणधारी जीवका प्राण लेनेसे विरक्त होता हूं। २ किसी दूसरेकी वस्तु विना दिए न लेनेकी प्रतिज्ञा करता है। ३ सब प्रकारके स्त्रीसमागम से वंचित होनेकी प्रतिज्ञा करता हूं। ४ सव प्रकारके झूठ बोलने की प्रतिज्ञा लेकर विरक्त होता हूं।
५ किसी प्रकारका मादक द्रव्य या गाजा-भाग-मदिरादिक सेवन करनेसे विरक होता हूं।
६ असमय अर्थात् दोपहरके बाद भोजन करनेसे वाज़ आकर विरक्त होता हूं [ वौद्ध लोक दोपहर बाद कुछ नहीं खाते और रातमें भी नहीं खाते]