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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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भाषा-टीका-अधिक आयुवाले सुखी जीवोंमें लवसत्तम अर्थात् पाच अनुत्तर विमानमें उत्पन्न देवोंका आयु सबसे अधिक श्रेष्ठ और सुखी है। इन्हें लवसत्तम इस लिए कहते हैं कि यदि इनका आयु सात लव अधिक होता तो इन्हें मोक्ष हो जाता। सभाओंमें सुधा अर्थात् शकेन्द्रकी सभा सर्व श्रेष्ठ है, क्योंकि वहा सभ्यपुरुषोंकी गोष्टी अधिक पाई जाती है। सारे धर्मोका निचोड सवने मोक्ष बताया है। अर्थात् धर्मका अन्तिम परिणाम श्रेष्ठ निर्वाण माना है। या जो सबके लिए हितकर हो उसको सार्व कहते हैं। वह अर्हन होता है। उसका कहा हुआ धर्म श्रेष्ठ और निर्वाण प्रद है। इसी तरह ज्ञातृपुन महावीर प्रभुसे बढकर सर्वज्ञ-ज्ञानी कोई नहीं है ॥ २४ ॥
.. गुजराती अनुवाद-अधिक आयुष्यवाळा सुखी जीवोमा लवसत्तम अर्थात् पाच अनुत्तर विमानवासी देवोनुं आयुष्य सर्वथी अधिक श्रेष्ट अने सुखी छे, [तेमनु आयुष्य जो सात लव वधारे होत तो तेओ मोक्षे जात, ते कारणे तेमने लवसत्तम कहे छे] सभामा सुधर्मा शकेन्द्रनी सभा सर्व श्रेष्ठ छे । कारण के त्या सभ्यपुरुषोनी गोष्टी अधिक प्रमाणमा थाय छ। बधा धर्मोनो सार मोक्ष छे, अर्थात् धर्मर्नु अन्तिम परिणाम श्रेष्ठ निर्वाण मनाय छे, जे वधाने माटे हित कर होय तेने सार्व कहे छे, ते 'अर्हत्' होय छे। तेमणे कहेलो धर्म श्रेष्ठ निर्वाण प्रद छ । आ प्रकारे 'ज्ञातृपुत्र' महावीर प्रभुथी अधिक सर्वज्ञ कोई नथी ॥२४॥
पुढोवमे धुणइ विगयगेही, न सपिणहिं कुबइ आसुपन्ने । तरिऊ समुदं च महाभवोघं, अभयं करे वीर अणंतचक्खू ॥२५॥
संस्कृतच्छाया पृथ्युपमो धुनोति विगतगृद्धिर्न सन्निधिं करोति आशुमशः।' तरित्वा समुद्रमिव महाभवौघमभयंकरो वीरोऽनन्तचक्षुः॥ २५॥ ___ सं० टीका-पुनश्च स भगवान् यथा पृथ्वी सकलाधारा वर्तते सर्वान् त्रसस्थावरान् धारयति सा, तथैव सर्वसत्त्वानामभयप्रदानतः