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१०४ . .. वीरस्तुतिः। .. विद्यत इत्यप्रतिज्ञः, इहलोकपरलोकाशंसारहितप्रतिज्ञस्तमेवंभूतं महावीरम् श्रेष्ठमाहुरिति ॥ १९ ॥ * अन्वयार्थ-[व] जैसे [थणिय ] मेघकी गर्जना [सद्दाण] सवशब्दोंम [अणुत्तर उ] प्रधान है-सबसे बढकर है, और [व] जैसे [चंदो] चन्द्रमा [ताराण] सव तारोंमें [महाणुभावे] उज्वल और मनोहर है, [वा] इसीप्रकार गिंधेमु] सव सुगन्धित पदार्थोम [चंदणं] चन्दनको [ सेठं] अच्छा [ आहु] कहा है [एवं ] इसी प्रकार भगवान्को भी [मुणीणं ] सब मुनिओंमें [अपडिण्णं ] इस लोक और परलोककी प्रतिज्ञा-कामनासे विरक्त [आहु] कहा है ॥ १९ ॥
भावार्थ-जैसे सव शब्दों मेघकी गर्जनाका शब्द वडा प्रवल होता है, सबके सव शब्द उससे नीची कक्षामें हैं, तथा सव नक्षत्र मण्डलमें चांद सवमें उज्वल और सुन्दर है, और समस्त सुगन्धित पदार्थोंमें मलयज चन्दन सुरभि
और उत्तम है, उसी प्रकार समस्त मुनिओंमें भगवान् महावीर उस समय सवमें प्रधान थे, क्योंकि उनमें आत्मासे भिन्न इसलोक और परलोक संबंधी किसी भी विषयकी कामना न थी ॥ १९ ॥
भापा-टीका-शब्दोंमें मेघकी गर्जनाका शब्द सबसे बड़ा होता है, असख्य तारों और नक्षत्रोंमें चंद्रमा तेजस्वी शीतल और महानुभाव है, सुगन्ध वस्तुओंमें मलयवनका गोशीप चन्दन श्रेष्ठ होता है। इसी प्रकार मुनि महर्षिगणोंमें भगवान् सवमें विलक्षण श्रेष्ठतापूर्ण थे। उनकी सब प्रतिज्ञाएँ इस लोक
और परलोक सम्बन्धी विषयाकांक्षाओंसे रहित थीं ॥ १९ ॥ - गुजराती अनुवाद-शब्दोमां जेम मेघनी गर्जनानो शब्द, ताराओने विषे जेम चन्द्रमा, अने सुगंधीओमां जेम गोशीर्ष चन्दन श्रेष्ठ छे, तेम मुनि महपिंगणोमां भगवान् श्रीमहावीर श्रेष्ठ छे, तेमनी सर्व प्रतिनाओ आ लोक अने परलोक सम्वन्धीनी वांछना रहित छे ।। १९ ।।
जहा सयंभू उदहीण सेढे, ... नागेसु वा धरणिंदमाहु सेठे। ..
खोओदए वा रसं वेजयंते, . ...', तवोवहाणे मुणि वेजयंते ॥ २०॥ . .