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________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता ८३ अधिक गंभीर होती है, इसीप्रकार सुमेरु पर्वत देवोंका क्रीडास्थल है और वह भी उनकी प्रतिध्वनिओंसे गूंज उठता है तथा वह गूंज सबसे प्रवल है। इसी प्रकार महावीर-परमात्माकी दिव्यध्वनि सवसे प्रबल और जोरदार है, यही कारण है कि-भगवान्के सदुपदेशका प्रभाव अमिट और शीघ्र होता है । पर्वतके सुनहरी रंगके समान प्रभुका पीतवर्ण युक्त शरीर दर्शनीय और मनोहर था । जिसप्रकार सुमेरुपर चढना कठिन है उसीप्रकार भगवान्की सर्वज्ञताको जीतना भी दुष्कर है ॥ १२ ॥ भाषा-टीका-वह सुमेरु पर्वत अधिराज है, दर्शनमें सौन्दर्य्यशाली है। बुद्धिमान् अच्छी २ शब्दोपमाएँ देकर प्रख्यात कर चुके हैं। जिसपर गान्धचौका मनोमोहक गायन होता है, सोनेसे लीप पोत कर मानो अभी शुद्ध किया गया है इसीसे सव' पर्वतों में उसे प्रधानता दी गई है, उसकी उंचाई और अधिक सन्धियोंके कारण उसपर मनुष्योंको पैरोंसे चढना सांस तोडने जैसा है । अत सामान्य प्राणी उसे चढ कर पार नहीं पासकते । इसी लिए उसे प्रधानता दी गई है। उस पर मणिमाणिक्य जैसे बहुमूल्य रन और कई अलौकिक जही बूटिया मंगलग्रह की तरह चमकती हैं । इसी भाति वीर भगवान्का दर्शन अनेकान्त है, परम सुन्दर है। जिसकी अकाट्य तर्कमयता प्रसिद्ध है। जिसकी गौतम जैसे दार्शनिकोंने प्रशंसा की है । उस दर्शनका सुन्दर वर्ण अर्थात् शब्दों में निर्माण हुआ है । तथा वह सव दर्शनोंमें प्रधान है। साधारण तथा अनुभव शून्य मानवोंके लिए अगम्य और दुरारोह है। जिनकी २८ लब्धिरूप औषधिओंकी चमक विलक्षण है । जो धर्मकी प्रभावनारूप आरोग्यता प्रदानकरनेके अर्थ काममें लाई जाती हैं । इसीसे दुरामहरूपी रोग शान्त होते है ॥ १२॥ . गुजराती अनुवाद-वळी ते मेरु पर्वत मंदर १, मेरु २, मनोरम ३, सुदर्शन ४, स्वयंप्रभ ५, गिरिराज ६, रनोचय ७, तिलकोपम ८, लोक'मध्य ९, लोकनालि १०, रान ११, सूर्यावर्त १२, सूर्यवरण १३, उत्तम १४, दिशादि १५ और अवतंस १६, ए सोळ नामे करी महा प्रकाश (प्रसिद्ध) वान् थई शोभे छ । जेना पर गान्धर्वोना मनोमोहक गायनो थाय छे । सुवर्णनी पेठे शुद्ध वर्णवाळो सर्व पर्वतोमा प्रधान छ । तेनी उंचाई अने अधिक संधिोने लीधे मनुष्योने माटे तेना पर चढवू पण अशक्य छ । वळी ते गिरिराज मणि
SR No.010691
Book TitleVeerstuti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshemchandra Shravak
PublisherMahavir Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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