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[६६२] - तसु पसाइण तुहुं विनिच्चितु
सकु व रज्जहं विस
ता जंपिउ मई - कहसु ता आइहउं मुणि-वरण पाडिज्जिहिहि महाडइहिं
आयइढ- उत्तिम चरियमाणस - सरि मुच्चिसह असियक्खह जक्खह निययसो जाणिज्जसु निय-दुहिय
मिनाहचरिउ
[६६३]
चिर- समज्जिय-सुकय-माहप्प
होउ होसि सद्धम्म-साहणु । साहु-बसह तसु मुणण-कारणु ॥ जो तुरइण हरिऊण | तत्तु वि आऊण ||
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[६६४]
भणिउ मई - अह किह णु मुणि- नाह
विजिय-जगिण उचियत्त-दक्खिण । करयलेण कमलक्ख-जक्खिण || रिउहु जु हणिहइ दप्पु । हियय-पिउ अवियप्पु ॥
नर- रयणह तसु वि असियक्त्व - जक्खु सो हुयउ चरिउ ।
नणु
ता सूरिण भणिउ जायइ सयलस्सु वि जयह एत्थ वि खयराहिव तुहुँ
अपु चैव सुह-अ-पेरिउ ॥ विजय- लोइ । उ इमो च्चिय जोइ ॥
ताहि
६६२. १. क. तुंह. ६६४. ३. क. वरिउ
[६६५]
पणय-पिउ दाण- रुइ सारय-रयणीयर - सरिसआसि नराहिg जय-पयड्डु
दीवि एत्थ विकणयपुर-नयरि नियतेय - निज्जिय-तरणि फुरिय कित्ति पडिवक्ख- खंडणु । धीर-चरिउ दुन्नय-विडणु ॥ चहु-गुण-रण-निहाणु । विक्कमजस-अभिहाणु ॥
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