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सणतुकुमारचरिउ
[६५८]
तयणु तक्खणि विणय-पणयाहं । । गुरु-हरिसिण पुलइयह धम्म-कम्म-निम्मल-विवेगई ।
दुण्ई पि खयर-प्पहुई चंडवेग-सिरिभाणुवेगहं ॥ वयणिण निय-दइयउ दुवि वि घेप्पिणु सणतुकुमारु । सिरि-गंधच-पुरम्भि गउ कय-रिउ-कुल-संहारु ॥
[६५९]
अह अणुक्कम-गहिय-नीसेसविज्जाहर-रज्ज-सिरि फुरिय-गरुय-खयराहिवत्तणु । उत्साहिय विज्ज-सय- सहसु पणय-इच्छिय-पयच्छणु ॥ चंडवेग-खयराहिविण भणिउ इयर-दियहम्मि । पहु भुवणस्तु वि इच्छियई पूरसि तुहुं हिययम्मि ।।
[६६०]
ता पसीउण मह वि एयाउ सय-संखउ कन्नयउ समगमेव परिणेउ सामिउ । तह गेण्हउ रज्जु इहु हउँ हवेमि जह मोक्ख-गामिउ ॥ जम्हा एत्तिउ काल इह ठिउ तुह मग्गु नियंतु । रज्ज-धुरंधरु को-वि निय- नंदणु अ-निरिक्खंतु ।।
[६६१]
जमिह पत्तउ आसि अइसइयनिय-नाणिण मुणिय-जगु अच्चिमालि-अभिहाणु मुणि-वरु तिण अक्खिउ-चक्कवइ आससेण-कुल-गयण-ससहरु । तुह कन्नई सय-संखहं वि होहिइ पिउ जय-सारु । भाणुवेग-धृयहं वि सु जि.. पिययमु सणतुकुमारु॥ ६६१. क. संखह.