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सणतुकुमारचरिउ
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अह विइज्जह कुमर-घायस्सु वीहंतु व तक्खणिण खयर-अहम-जिउ नछु. वेगेण । ता नहयर-सवह तमु वयणु अ-नियमाणिण व तरणिण ॥ अत्थ-सिहरि-सिहरह परइ गंतु विहिउ आवासु । हय-रिउ कुमरु वि तसु पियह सुमरंतउ संभासु ॥
निसिय-ससहर-किरण-सर-भरिण कर-कलिय-कराल-तणु कुमुय-कंति-कोदंड-लहिण । नहयर-वह-वइयरिण त विय-मणिण इव मयण-धट्टिण ॥ रयणि-समागमि तह कह वि परिसल्लिउ सव्वंगु । असुहिण सुहिण व घत्थियउं जह न मुणइ निय-अंगु ॥
[६३६]
नणु हयासु सु सत्तु निदलिउ लीलाए वि एहु पुणु किह णु भुवण-दुज्जउ जियव्बउ । . हुं हुं अत्थि उवाउ मई जिणणि रिउहु एयह वि लद्धउ ॥ जइ जीवंतु स-नयणुलिहिं हरिण-नयणि पेक्खेसु । वा एयह मयणह रिउहु तुरिउ जलजलि देसु ।।
[६३७]
इय विचिंतिरु कुमरु अडईए ढंढोल्लिवि को-वि खणु . गयउ कह वि धवलहरि तम्मि वि । ता ससि-मुहि संभमिण उत्तरीउ संवरिवि विहसिवि ।। उहिवि संमुह हरिस-भर- खलिरक्खर-वयणेहिं । पुच्छइ पच्छिम कह मुइर वाह-सलिलु नयणेहि ॥ ६३७. ९. क. ख. वाहु.
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