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[६३०
नेमिनाहचरिउ
[६३०] अह वियासिय-वयण जा किंचि सा मुद्ध समुल्लवइ ताव दिढ हय-विहि-विसेसिण । रोसारुण-लोयणिण गयण-ठिइण तिण खयर-पुरिसिण ॥ अहह जियंतह फणिवइहि चूडामणि कु छिवेइ । कु व केसर पंचागणह जग्गंतह वि गहेइ ।।
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[६३१] इय भणंतिण विरसु रसिरस्सु परिकंपिर-तणु-लयह संनिहीउ तमु तरुणि-रयणह । अवहरिउ कुमारु लहु अह मुएमि सुर-सिहरि-सिहरह ।। तह जह पर-पिय-मण-जणिय- पावह फलु पेक्खेवि । निहणु उवेइ हयासु इहु सय-सक्करउ हवेवि ॥
[६३२]
इय विचिंतिरु तुरिउ अलि-गवलदल-नीलिण नह-यलिण लग्गु गंतु सो पाव-नहयरु । जा ताव निरिक्खिउण कुमर-चरिण सरि सिहरि पुरवरु ।। गुरु लहु लहुयरु लहुयतमु उद्ध उद्घ गमिरेण । कह मई दिवउ जाइसइ एहु इय चिंतंतेण ।।
[६३३]
हणिउ मुट्ठिण कुलिस-कठिणेण निस्संकु कवाल-तलि तयणु गलिर-रुहिर-च्छडाविल । अक्कंदिय-पडिरविण भरिय-गयण-गिरि-धरणि-मंडलु ।। मुद्द-कंदरह विणिस्सरिय- दीहर-रसणा-सप्पु । कर सोहग्गु न हुयउ लहु सो नहयरु गय-दप्पु ॥