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६२९ ]
[६२६ ] अह या विहु विसम-पगईए ससि-मुहीए लज्जाउलत्तिण । उचिय - विहिहि रायाउरत्तिण ॥
कंदह तह सुवि विम्हारिय- तस्समय
मह मणहरणिय स ज्जि एह इय परिचितंतेण । साकुमरिण कामिणि भणिय विम्हिय-मण-पसरेण ॥
सणतुकुमारचरि
[६२७]
चsवि संभमु मुवि अवमाणु
विहिऊण पसाउ अणु जो तइयहं पयडियउ
पसरिय-अणुरायाणलिण
किन वियरसि पसयच्छ तुहुं मह नेहह सव्वस्सु ॥
[६२८]
किं न सुमरसि सुयणु जं नयर
उज्जाणि कीलण - गयह निक्खेविय कमल - वरमह नेवत्थिण सहिहिं सहुं तह तह परिरंभणु विहिउ
सरिवि राउ सो पुत्र- दंसिउ । उद्दिसेवित नियचयंसिउ || उवताविय अंगस्तु |
तसु लज्ज-अहोमुहिहि उक्खेविणु भणिउ नणु चिंतामणि व अहन्न घरि तापसियसु अवलोयणिण
६२६. ५. क. विहि. ६२९.९. क. ह.
[६२९]
इय भतिण कुमर- रयणेण
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मज्झ कंठि तई मयण - बुद्धिण | माल पूय कय भाव- सुद्धिण || आरंभिय-कीलाए । मह जि सु-वीसंभाए ॥
arm-कमल दाहिणिण हत्थिण । सुयणु लद्ध तुहुं मई कयत्थिण || दुलह इमम्मि वणम्मि | धरिवि सु णेहु मणम्मि ||
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