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५४१]
सणतुकुमारचरिउ -
[५३८]
कमिण पुणु अणुदिणु वि परिगमिरु संपत्तु महाड विहिं . कह वि क्रूर-सावय-रउदिहिं । अह निमुणिवि गडयडिउ विहिउ विविह-सिंधुरिहिं भद्दिहि ॥ नणु किं सणतुकुमार-नर- रयण-गहिर-झुणि एउ । इय चिंतिरु तमु समुहउ धाइ मुट्ठि वंघेउ ॥
[५३९]
चमरि-केसरि-वग्ध-सदुलवण-वारण-सरह-हरि- हरिण-नउल-कलहंस-संकुलि । गुरु-तरुयर-गिरि-गहण- विउल-तडिणि-सरवर-समाउलि॥ हिंडंतह तसु तहिं महिहिं पत्तु वसंतु दुरंतु । · जहिं विरहिउ पिय-माणुसह गुण सुमरइ झूरंतु ॥
[५४०]
कसु व वर-तरु-कुसुम-मयरंदआमोय-वहलिय-सयल- वसुह-वलय-गिरि-विवर-अंवरु । सहयार-तरु-मंजरिहिं रेणु-पसर-पिंजरण-मणहरु ॥ किंपाग-दुम-कुसुम-रय- भरिय-दियंतरु. एउ । वियलइ हियडुल्लउं जणहं मलयाणिलु महु-केउ ॥
[५४१].
तवहिं पहि-यणु भमर-झंकार . . . . . परहुय-रव निड्डहहिं जणहिं खेउ केसुय असोय वि। वियइल्ल मालइ वउल कन्नियार दुह देंति गरुय वि ।। नं चिट्ठइ रुट्टिण विहिण पहियहं मंडिउ पासु । इय कसु मुहि ण अइक्कमइ एहु वसंतु हयासु ॥ ५३९. ५. क, सरवरि. ६. क. हिंडंसहं.