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सणतुकुमारचरिउ
[५३० ___वइर-मरगय-पुलय-वेरुलियससि-सूरकंतक-मणि- इंदनील-पमुहेहिं रयणिहिं । परिविलसिर-आहरण- विहिय-सोह-सव्यंगु धरणिहि ।। पसरिय-कित्ति तुरय-रयणु चियरिउ कुंवर-वरस्सु । अह नणु भुवणु वि अक्कमइ एहु निय-गुणिहिं अवस्सु ॥
[५३१] __ इय विचिंतिवि जलहिकल्लोलअभिहाणिण पायडइ तुरय-रयणि तहिं आरुहेविणु । सविहागय-निव-सुयहं . वहुहुं पुरउ स-हरिसु भणेविण ॥
नणु धाविरहं तुरंगमहं को जिप्पइ कवणेण । . सह वहु-कुमर-तुरंगमिहिं मुयइ तुरउ वेगेण ॥
[५३२]
ता खणद्धिण जलहिकल्लोलु परिधाविरु विजिय-मण- पवण-वेगु वहुयर वसुंधर ।
अक्कमिउण गयउ अह सेस कुमर पसरंत-दुह-भर ॥ . उहु आगच्छइ जाइ उहु उहु गउ दुर-पएसि । उहु सु न दीसइ - इय सुइरु विलवहिं कुमरह रेसि ॥
. . [५३३] .. अह समुन्भुय-नियय-अंगरुहपढमेल्लुय-विरह-दुहु सुणिय-पुव्व-उवइट-वइयरु । चउरंगिण निय-वलिण चलिउ सयल-पडिवक्ख-दुह-यरु ॥ आससेण-वसुहाहिवइ विहलिय-माण-मर१ । गयउ वसुंधर अइ-वहुय मउलिय-मुह-कंदु१॥ ५३१. क. वहुहु पुरओ. ५३२. १. क. कल्लोल. ६. ७. ८. क. मोहु at all the four places,
३. १. क समब्भुव.