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[५१४]
कि णु पिय-सहि चवि धीरतु
सणतुकुमारचरिउ
एम् वि तुहुं चिह्निहिसि जह दसहूं करि धरिव
अह किं-चिवि तक्कह-सवण - पच्चागयचेयन्न । साइह मई सउं कन्न ॥
संपत्तिय उज्जाण वणि
अवलोsविसयल वणु सविसेस-समुल्लसियगंतु मज्झ कयलिय-हरह भइ य कहमवि मह पुरउ
किं न कुणसि केत्तिउवि उज्जमु । विसम-वाणु तुह सो ज्जि निरुवमु ||
[५१५] . तानिरिक्खि मयण - आययणु
आगच्छसु मह पुरउ तह चैव य कयइ मई इय जइ कमवि सुविसु ता अप्परं सु-कयत्थु हउ
सु ज्जि मयणु अनियंत वालिय । विरह - जलिर - हुयवह- करालिय || निवडिय नीसाहार । खलिरक्खर - परभार ॥
[५१६]
सहि करेविणु वेसु मयणस्सु
जेण ललहुं तेण वि विणोइण । मिलिउ तुहुं वि इह विहि- निओइण || इ एत्थ पत्थावि । मन्नहुँ अकत्था वि ॥
[५१७] एत्थ - अंतरि मंयण - आययणि
परिभमंतु तत्थ वि पहुत्तउ ।
अ-लहंतउरई कुमरु अह विम्हिय-मण-पसरु सुणिवि ताहं दोन्हं पिवत्तउ || मह नेवण व तुहुं इह व अच्छु पसयच्छ ।
तुह छमिण जिण गंतु तर्हि पेच्छउं हउं जि मयच्छि ॥
५१४. ७. क. सेयन्न ५१६. २. क. सयल. ५१७. १. क. भायणिण.
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