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नेमिनाहचरिउ ।
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[५१० सुयणु संपइ हुयउ अइ-कालु ता गम्मउ - इय सहिहि भणिय मुद्ध सा देह-मेत्तिण । कह-कहमवि काणणह नियय-भवणि गय सुन्न-चित्तिण । ता संपाविय-अवसरिण विसम-सरिण सा वाल । आलिंगिय तह कह बि जह हुय तसु दस विगराल ॥
[५११]
अह तुरंतिहि सविह-गय-सहिहिं विरहाणल-पज्जलिर पढम-निसिहि उदियम्मि ससहरि । वायंतई मलय-गिरि- पचणि कयइ तामरस-सस्थरि ।। मणिमय-कुटिम-तल-उवरि नेउ निवेसिय मुद्ध । अह दढयरु विरहिण तबिय नं पलयाणलि छुद्ध ।
[५१२]
किं नु विरइउ एउ रवि-करिहिं । कि व उद्विउ वाडवह किं व जणिउ कप्पंत-जलणिण । कि व निम्मिउ तडि-लयहं किं व विहिउ बज्जग्गि-पडणिण । सहयार-दम-मंजरिहि संगिण खलियावेगु । मलयाणिल तणु-दाहयरु हुउ महु हरिय-विवेगु ॥
[५१३]
हुयउ मुस्मुर-मउ व तामरसदल-संचिउ सत्थरु वि चंद-किरण पुण सर विसेसहि। . गोसीस-चंदण-रस वि अंगि लग्ग हुयवह व सोसहि ॥ . . . इय विलयंतिय पुणु पुणु वि वियलिय-सयल-विवेय । उहिर विहसिर चकमिर भणिय गोसि मई एय॥ ५१०. ५. क. निय. ५१२. १ क. किन्नु.