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नेमिनाहचरिउ
[५१८]
इय भणेविणु ताल-रव- पुच्छु
पहसंतिहि तिहि दुहि वि चारु चारु इय जंपमाणिहिं | पत्तु सविहि तसु हरिण नयणिहि ||
ठी अहोमुह जाव | भणिय कुमारिण ताव ॥
विवसंत-वयणंंबुरुहु इह उत्तम्मिवि गोरडी आलिंगिव सिरि चुंविण
[५१९]
सुयणु पच्छिम दियहि कुसुमोह
मह
हरियंदण - रसिण त महुरक्खर - रविण तिण हउं पीय- सुहा रसु व हुयउ हरिस-पुलयकुरिउ
महिउ अंगु तह सुद्ध-बुद्धिण | पुरउ पढिय थुइ भाव- सुद्धिण || पत्त परस- उदउ व्व । कप्पदुम- पोउव्व ॥
[५२०]
पुणु कि णु ससि वयणि
कुणसि न मह संमाणु माणिणि । निसिय नयण कलहंस-गामिणि || संधि निवेसिवि मुद्ध |
अज्जु तुहुं
पसिऊण संभासिण वि जं चिहसि वसुमहिं ता दाहिण-य-लय सुहय
जंपर - हुं हुं मई मुणिउ तुह नेहु सुहासिय बुद्ध ॥
[५२१]
तुह विओएण सुहय हउं थक्क जीवित-संपत्त-दुद्द-भर
विरहाणल-तविय-तणु
तु गोयरि अण्णयर अह भीडिव वच्छ-त्थणि वंधिवि भुय-पासेहि | भणइ स-सज्झनु कुमम् ससि-मुद्दि वयणिद्दि सरसेहिं ॥
५१८. ४. क वरुहु.
रमहिं रमणि सय सहस सुंदर ॥
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