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________________ २० नेमिनाहचरिउ [५१८] इय भणेविणु ताल-रव- पुच्छु पहसंतिहि तिहि दुहि वि चारु चारु इय जंपमाणिहिं | पत्तु सविहि तसु हरिण नयणिहि || ठी अहोमुह जाव | भणिय कुमारिण ताव ॥ विवसंत-वयणंंबुरुहु इह उत्तम्मिवि गोरडी आलिंगिव सिरि चुंविण [५१९] सुयणु पच्छिम दियहि कुसुमोह मह हरियंदण - रसिण त महुरक्खर - रविण तिण हउं पीय- सुहा रसु व हुयउ हरिस-पुलयकुरिउ महिउ अंगु तह सुद्ध-बुद्धिण | पुरउ पढिय थुइ भाव- सुद्धिण || पत्त परस- उदउ व्व । कप्पदुम- पोउव्व ॥ [५२०] पुणु कि णु ससि वयणि कुणसि न मह संमाणु माणिणि । निसिय नयण कलहंस-गामिणि || संधि निवेसिवि मुद्ध | अज्जु तुहुं पसिऊण संभासिण वि जं चिहसि वसुमहिं ता दाहिण-य-लय सुहय जंपर - हुं हुं मई मुणिउ तुह नेहु सुहासिय बुद्ध ॥ [५२१] तुह विओएण सुहय हउं थक्क जीवित-संपत्त-दुद्द-भर विरहाणल-तविय-तणु तु गोयरि अण्णयर अह भीडिव वच्छ-त्थणि वंधिवि भुय-पासेहि | भणइ स-सज्झनु कुमम् ससि-मुद्दि वयणिद्दि सरसेहिं ॥ ५१८. ४. क वरुहु. रमहिं रमणि सय सहस सुंदर ॥ [ ५१८
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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