________________
वृको० : समस्तभुवनख्यातो महावैद्यो रुजापहः
अमुं त्वमेकयोगीन्द्र निराकार्तुमलं प्रभो॥ कको भववाहिमहणे तुह सत्ति परा ॥ . . तुहुँ परमवेज्जु जगसंतियरु ।। · उवृ० : तुम्हे चेव संसारवाहि फेडणपरमवेज्ज त्ति पसंसिय ।।
आको० सनत्कुमारना विस्तृत चरित्रथी परिचित छे. पण ते एक तरफथी तेनो संक्षेप करे छे, तो बीजी तरफथी वर्णनो, शास्त्रीय संदर्भो (जेम के सामुद्रिक प्रमाणेनां पुरुषलक्षण अने स्त्रीलक्षण, वैद्यक प्रमाणेनां रोगलक्षण), स्तुति वगेरे इतर सामग्रीथी तेने पल्लवित करे छे. चरित्रना त्रीजा घटकांनी रोगोनो यादी वधु विस्तृत वनी छे. धवि०मां जेम शक्र शबरवैद्यनुं रूप लईने आवे छे, तेम अहीं पण वे देवो शबरवैद्य बनीने आवे छे. चम०मां छे ते प्रसाणे अहीं पण सनत्कुमार
थूकथी मसळीने डाबा हाथनी तर्जनी 'साडा सोळ वानी'ना सोना जेवा वाननी बनावे छे. बको०अने उवृ०नी जेम अहीं पण परीक्षा करवा आवनार वे देवोनां नाम विजय अने वैजयन्त छे. आम आपणने आको॰ना आधारभूत साधनोनो संकेत मळी रहे छे. . हम०मां आपेलु सनत्कुमारचरित्र चमना गद्यचरित्रनु ज पद्यरूपान्तर छे. तेमां चमनी गाथाओ सीधेसीधी उठावी लीधेली छे, ज्यारे गद्यना शब्दोने यथाशक्य गाथामां ढाळी दीधा छे. वृत्तांतना त्रीजा घटकने पण आ वात पूरेपूरी लागु पडे छे. पण देवोना रोग मटाडवाना कहेणना उत्तरमा सनत्कुमार मुनिए ज्यां एवो प्रश्न पूछ्यो छे के 'तमे रोगो आ भव पूरता ज मटाडो छो के सर्व काळ माटे ?' तेने स्थाने हम०मां एवो प्रश्न छे के 'तमे तनुरोगने शमावो छो के कर्मरोगने ?' अने आ प्रश्नमां उवृ०मांना 'तमे शरीर व्याधिने मटाडो छो के कर्मव्याधिने' एवा प्रश्ननो ज पडघो छे. ते ज प्रमाणे सनत्कुमारने थयेला रोगोनी चम०मां (अने आकोवृ०मां) जे लांबी यादी छे, तेने स्थाने हम०मां सात व्याधिओ गणावती एक गाथा उद्धृत करेली छे. आ गाथा सहेज शब्दफेरे आकोवृ०मां पण उद्धृत थयेली छे, अने ते ज भावार्थनी एक गाथा उवृ०मां आपेली छे.
- हनेमांनुं सनत्कुमारचरित्र हमना प्राकृत चरित्रनुं अपभ्रंश भाषामां अने रड्डा के वस्तु छंदमां करेले काव्य-रूपान्तर छे. पूर्ववर्ती चरित्रनी सामग्री लईने