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हरिभद्रे सनत्कुमारना चरित्रने लगती रीतसरनी, प्रसंग अने भावनो मावजत करती अने अलंकृत लीनी काव्यमय रचना आपवानुं लक्ष राख्युं छे. हरिभद्रना अपभ्रंश रूपांतरने, व गाळामां वे ज वर्ष पहेला रचायेला श्रीचंद्रना सच०नो लाभ मळ्यो लागे छे, केम के देवोनो प्रतिभाव सांभाळीने पोतानुं रूप निहाळता सनत्कुमारनी लागणी जे शब्दोमां सच०मां व्यक्त थई छ ('मसिमीसियजलओहलियं) ते ज शब्दोनो पडघो हरिभ पाडयो छे ('मसिरसिण ओहलियं').
सनत्कुमारचरित्रना त्रीजा घटक पूरतो त्रिश०नो मुख्य आधार · उवृ० (अने ते द्वारा चम०) होवानुं जणाय छे. पण बीजी वार परीक्षा करवा आवेला देवोने सनत्कुमारनो जे प्रश्न छ तेमां, आगली परंपरामां ज्यां आ भवना व्याधि अने पर भवना व्याधिनो, बको मां सामान्य व्याधि भने संसारव्याधिनो, अने उवृ०मां शरीरव्याधि अने कर्मव्याधिनो विरोध छे, त्यां आकोवृ०मां द्रव्यक्रिया अने भावक्रियानी सविस्तर चर्चा छे, अने त्रिश०मां आने अनुसरीने द्रव्यव्याधि अने भावव्याधिनो भेद करेलो छे. छेल्ले उदो०ना सनत्कुमारचरित्रना त्रीजा घटकनो आधार त्रिश० तथा आकोवृ० ए जे वधारानुं रूपान्तर वापरेलं ते होवानुं जणाय छे. केम के सनत्कुमारनुं रूप जोईने परीक्षा करवा मावेला देवो पर पडेलो प्रभाव त्रिश०मां (धूनयामासतुर्मीलिम्) अने उदो०मां (सिरधूणणं कुणंता) एक सरखी रीते व्यक्त थयो छे. अने ते अन्यत्र आपेली विगतोथी जुदो पडे छे. बीजु, सनत्कुमारने थयेला सात रोगो वाळी जे गाथा आकोवृ०मां टांकेली छे, तेनी ते उदो०मां पण आपेली छे. अने द्रव्यव्याधि अने भावव्याधिनी चर्चा पण काईक अंशे आकोवृ०नी याद आपे छे.
चरित्रनो वीजो घटक
बीजा घटकमां सनत्कुमारनो जन्म अने युवाना, अश्वापहार, मित्र महेन्द्रसिंहनी शोध, बकुलमतीनुं वृत्तान्तकथन, यक्षनी सहायथी मानससरोवर पहोंचवू, असिताक्ष साथेनुं युद्ध, विद्याधर भानुवेगनी आठ कुमारीओ साथे विवाह, सुनन्दासाथे मेळाप अने वज्रवेगनो वध, संध्यावलि साथे विवाह, चन्द्रवेग अने भानुवेगनी सहाय, संध्यावलिए आपेली प्रज्ञप्तिविद्या, अशनिवेगनी साथे युद्ध, वैताढयना राज्यनो प्राप्ति, अर्चिमालि मुनिए करेलं भविष्यकथन अने तेमणे कहेला सनत्कुमारना पूर्वमववृत्तान्तनुं कंचुकी द्वारा कथन (सनत्कुमारचरित्रनो ए बीजो घटक छे.), चन्द्रवेगनी सौ कन्याओ साथे विवाह, हस्तिनापुरमां पुनरागमन अने चक्रवर्तित्वनी प्राप्ति : एटली मुख्य घटनाओ छे, .. .