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.. आ पछी वृको० मां त्रीजा घटकना वृत्तांतमा केटलीक नवी विगतो देखाय छे. वृको०मां दिगंबर परंपरा - अनुसार मात्र त्रीजें घटक मळे छे. बृको०ए श्वेतांबर परंपराना चहिं०, धवि० अने चम०मां त्रीजा घटकनुं जे रूपांतर : मळे छे तेनो लाभ तो लीधो ज छे, पण इंद्रे करेली रूपप्रशंसा वाळो प्रसंग तेमां जुदी रीते छे. सौधर्मेन्द्र सौदामनी. नाटक : जोतो हतो त्यारे कार्यप्रसंगे ईशानकल्पमाथी आवेला संगम नामना देवनी बीजा सौने झांखा पाडती देहकांतिनो इंद्रे एवो ख़ुलासो आप्यो. के ते देवे पूर्व भवे आयंबिल वर्धमान तप करेलुं तेनुं आ फळ छे. 'एवं कांतिमान बीजुं कोई छे: खलं ?' एवा देवोना प्रश्नना उत्तरमां इंद्रे पृथ्वीमां हस्तिनागपुरनो चक्रवर्ती राजा सनत्कुमार संगमदेव करतां पण अधिक तेजस्वी होवार्नु जणाव्यु. आ पछीनी बे देवोनो मुलाकातमां पोताने अलंकृत स्वरूपमां निहाळवा सनत्कुमारे रूपगर्वथी प्रेराईने देवोने फरी निमंत्र्या, अने त्यारे मानवीना रूपयौवननी क्षयधर्मितानी वात:सांभळीने सनत्कुमारे जोयु तो तेने पोताने पण शरीर कांतिहीन कळायु-एटली विगत वधारे छे. वळी ते पछी श्रमण, तरीके विहार करता सनत्कुमारमुनिने भिक्षामां मळेला बकरीना दूधनी छाशमां मिश्रित चीणा भातना भोजनथी अनेक रोगो उद्भव्यानुं अने आमौषधि, खेलौषधि वगेरे सिद्धि प्राप्त थया छतां तेणे रोगोनो प्रतिकार न कर्यानुं जे कयुं छे, तथा फरीथी सौधर्मेन्द्रे सनत्कुमारनी सहनशक्तिनो प्रशंसा करी तेथी पेला ज वे देवो वैद्यवेशे सनत्कुमारनी फरी परीक्षा करवा आव्यानी जे वात छे, ते नवां उमेरायेलां तत्त्वो छे. खेलौषधिथी अंगने साउं: करी बताववानी विगत वृको०मां छोडी. दीधेली छे.
: कको० को०नो उपजीवी होईने तेमां आवो ज वृत्तांत छे. मात्र खेलोपधिथी देहने दिव्य करी देखांडवानी वात वधारे छे.
। सनत्कुमारचरित्रना त्रीजा घटकमा प्रथम वार बृको०मा देखातां उपर्युक्त नवीन अंशो पछीथी श्वेतांबर परंपराना उवृ०, हम०, हने० अने त्रिश०मां पण स्वीकृत थया छे. देवंद्रे उवृ०मां चम०मांनुं सनत्कुमारचरित्र लगभग अक्षरशः उद्धृत कर्यु छे, पण वच्चे केटलोक अंश :बीजेथी लीघो छे. चरित्रना त्रीजा घटकने लगती उपर जणावेली जे नवी वीगतो पहेली वार आपणे वृको०मां जोईए छीए ते बधी उवृ०मां. पण मळे छे. उपचार करवा आवेला देवो पाछा फरता सनत्कुमारमुनिने-जे वचनो उ०मां कहे छे, तेमनुं वृको०ना : करतां कको०नी साथे वधु . शाब्दिक साम्य छे,