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अह अरि जिय करिसि म म रोस विहिवसेण कु व कुव न पावइ । मण अगोयर विविचिह्न आवइ || समुवज्जियई चएवि । भद्दु अभद्दु व देवि ||
serer कवि उवरि भव-वित्रिणि दुहावणड़ निय सुह असुहई पुञ्च भवको गिरहइ जसु अवजसु च
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जलिर - मंदिर-सरि
निरुवदवु मोक्ख-पुरु तणु चंचल धम्मु थिरु अप्पु वि अनियंतिर पिसुणु ता जिय वट्टसु इयरुवरि
संसारु
दुहय विसय सुह है सिव-पहु । सुहर सुगुरु खलयणु दुहावहु ॥ सु-नियंतिउ सुजि मित्तु । राय-दोस चत्तु ||
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जलहि- सुरगिरि- गहिर-थिर-मणह
इय तस्म्रु विचितिरह अइ-मंथरु जिउण सेहि पहि कह कह वि. ता उक्खिडियस रुहिर-वस
सो हयासु बालय-तत्रस्सिउ । उन्ह - उण्हु परमन्तु हरिसिउ || जा उप्पाडइ पत्ति । मंस - न्हारु जुयति ॥
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RTE fafe aft पाव-तवसिइण
for you धम्म- नह निक्कारणि निवरण वि नहि पर- लोइ चिनिय कयहं छुट्टिन गुरु-गुरुएहिं त्रि
पुरिस-रयणु एरिसु विडं विउ । किह अ-कज्जु एहु एहु कराविउ || सुह असुहहं संसारि । विसम-विवागि अ-सारि ॥
६९४. ४. क. विणिवि. ५. विविहिह. ६९६. ५. क. उण्हउण्ह. ६. पट्टिहि.
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