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७०१.]
संणतुंकुमारचरिउ
[६९८]
इयं निसामिरु देव-गुरु-वयणपरमामय-सित्त-तणु राय-दोस-परिहरिय-माणसु। आगंतुण निय-भवणि बहु-दुहत्तु निय-कज्ज-अणलसु ॥ मेलिवि संघु चउबिहु वि. तह सुहि-सज्जण-लोउ । विहिउण पुय-सक्कार तसु सो निय-कुल-उज्जोउ ॥
[६९९]
करिवि निय-घर-सुत्थु सुहि-सयणधण-धन्नु परिच्चइवि . धरिवि हियइ जिणनाह-सासणु।। पडिवज्जिवि वर-वरणु गंतु गिरिहिं गेण्हे वि अणसणु ॥ पुच-दिसिहं उस्सग्गि ठिउ गमइ पणरस दिणाणि । इय सेसासु वि तिसु दिसिसु पिहु पिहु पन्नरसाणि ॥ . . .
[७००
इय दु-मासिउ उग्गु तव-कम्मु अइ-दुक्करतरु करिवि डंक-कंक-वग-उलुग-कागिर्हि । : सिंचाण-सिगाल-विग- . वण-विराल-भल्लंकि-सुणगिहि ॥ . खज्जिर-पहि-पएसु सुर- सिहरि-सिहर-थिर-चित्त । . मरिवि सु हुयउ सुराहिवइ सोहम्मम्मि पवित्तु ॥ ....
[७०१]
सु वि तहाविह-नियय-दुच्चरियपरिखेड्य-मुहि-सयणु वाल-किरिय-परिसीलणुज्जउ । वुह-वग्गिण अवगणिउ । मरिवि नियय-दुक्कय-विइज्जउ ।। 'अग्गिसम्मु सोहम्म-सुर- मंदिरि तियसिंदस्सु । ' एरावणु वाहणु हुयउ वसिण स-कय-कम्मस्सु ।।
६९९. ४, विरवरणु.