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________________ દ્ सम्बभूव च सुलक्षणिकाऽस्या-धीश्वरस्य शुचिरश्मिभृदास्या भामिनी गुणवृतेव सुगाटी याऽपि शीलकुसुमोतमवाटी | १८| - प्रयं उस राजा के मुलक्षरगा नाम की रानी थी, जिसका मुंह चन्द्रमाके समान निर्मल चमकीला था और साड़ी जिस तरह धागों से गुथी हुई होती है वैसे ही वह भी भले गुणों की भरी थी तथा शोलप फूल को भलो वाटिका मी थी । स्वगत दशमतो महिमेव प्रच्युतः स खलु भास्करदेवः । पुत्रिका समभवल्ललिताम्या श्रीयमत्र नावभिधाऽस्याः ।। १९ ।। प्रयं दशवं स्वर्ग मे रामवना का जीव भास्करदेव चय कर उस दशम स्वर्ग की महिमा मरोवाइस भूतल पर प्राकर उस रानी कू. ख मे ग्व हो सुन्दर मुहवाली लड़की हुआ जिसका नाम भी श्रीधर रखा गया था । சு दर्शकोऽधिपतिरत्र गतायाः मन्मनुष्यवमतेरलकायाः तेनमार्द्धमभवन विवाह: प्रेमतत्वमनयोः समुदाह | २० | , अर्थ- इमी विजयार्द्ध पर्वत पर एक मलका नामको दूसरी नगरी का राजा दर्शक नाम वाला था जिसके कि साथ उस श्रीधरा का विवाह हुवा जिसमे कि उन दोनों दम्पतियों में परस्पर में बहुत हो प्रेमका बर्ताव रहा । एतो हिभावमपापः पूर्णचन्द्रचरदेव इहाप । नामवगुणविवराम सम्भवश्वशमः सुखवासः । २१ ।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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