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________________ षोड़श सागर की प्रायुवाला भास्कर नामका धारक देव होकर वहाँ के सुख भोगने लगी। महा शुक्र स्वगंके एक विमान का नाम भास्कर है। पूर्णचन्द्रनगपोऽपि तथैवान्ते ऽहनाम्तवनती मृदवान । देवनामनुवभव मदा वै-ट ये नाम्नि म्पदे शभभावः ।१५। प्रर्थ --पूर्णचन्द्र राजा भी अपनी प्राके अन्त में प्रोन्न भगवान को याद करते हये महाभ भावों में मग मो वा भी उम। महाशुक्र नामक दशवम्व जाकर वंद्रयं नाम विमान का प्रधिपति देव हुवा, जिसको कि मोलह मागर का प्रार। सिंहचन्द्रमुनिगट् चम्ममग्रीव के पनि नाम मुरंशः । प्रावृडादिममयेधपियम्पादनाव काटना मुतपम्पा ।।१६।। प्रयं- विचन्द्र मुनिराजने वायोग वगंरर को शरण करने हए कठिन प्रोर मच्चो तपस्या को, ताकि वर प्रतिम प्रबंधक में जाकर इकतीस सागर को प्राय का धारक प्रहमिन्द बना। याम्यभागनियतम्य वभवाधा निजीयपरिम्पाजितवादः । पतनम्य धरणातिलकाम-दिन्यवानपी विनयाद । १७॥ प्रयं-प्रब इयर हमारे हम भरत के विजया पर्वत पर दक्षिण की तरफ में ही एक धरणीतिलक नाम का नाम है जो कि प्रपनी खाई के द्वार। ममुर की जीत है, उमा नगर का सामान करने वाला प्रावित्यवेग नामका गजा हो चुका है।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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