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________________ प्रपं-पोर पूर्णचन्द्र राजा का जीव जो वडूयं विमान में देव हुवा था वह पुण्यात्मा वहां से प्राकर इन दोनों दर्शक पौर श्रीधराके संयोग से पुत्रो हुवा जो कि नाम में भी प्रौर गुरण से भी दोनों ही तरह से यशोधरा होते हुये मुम्ब का निवासस्थान हो दुवा। माऽऽप भास्करपुरम्य च मूर्या-वन भूमिपतिना विर्या । पाणिपीडनमनन्य गुणेन सुप्रसिद्ध यशमा मह तेन ।२२। प्रयं भास्करपुरका गजा मय था जो कि बड़ा हो पास्यो या प्रतः उमोर गमान पग का पारक पा उग राजा के माय में बहुत प्रसनी का।। बाली उम पापा का विवाह होगया। सिंहसेन नदेखगेन: श्रीगेऽपि भावारिधिपतिः । पनगम्हि भवनमतमार: मवेग नि नाम दधाम ।२३। प्र.मिरामेन रजा का जीय प्रशानियोग ठायो मरकर जो मरवार स्वर्ग के विमान में श्रीधर गया था र तह मे वय कर प्रब ममार मपुट मे पार होने के नियमान समान होताया इन वनों मूवनं पोर पशोषण के मयोग में हमवेग नामका पुत्र हुवा। रश्मिवेगजनकोऽपथ माता मम्बिाध्य जगतः मुम्ब जातान । मखगाम महमा मनिषाय मापिकावमिति मंयममन्वं ।।२४।। प्रपं-- रहिमवेग का पिता गजा मूवनं पोर उमको माता पशोधरा दोनों ही सामारिक मुन्ध में विग्न होकर एकाएक मुनिपने को प्रोर प्रायिकापनेको प्राप्त होकर मंपम का पालन करने लगे।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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