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मयं-मजन जो जोता है वह गुणों का हो प्राहक होता है तो दुर्गन दोष हो ग्रहण किया करता है. उसको उसके स्वभावानुसार यही जाति है हममे फिर किम ऊपर तो कसा जाये और किससे राजो रहा जाये ? गजो और नाराजोको तो इसमें कोई भी बात नहीं, दोनों ही प्रपने : म्यभाव के प्रधान है। दुधाजनो भूवलये 'वभानि प्रयोग एकः बन्नु दाखजातिः । पीडाकगेऽन्यो विग परन्तु मन्तोऽत्र मा यम्यमिता भवन्तु २५
प्रयं-हम भूतल पर जो दो प्रकार के प्रावमी है उनमें से एक मंयोग में दाव देने वाला होता है तो दूमा वियोग में पोड़ा करनेवाला. इमनियमान मामा लोग तो उन दोनों में हो मध्यस्थ भाव रखते है न परल वाले पर द्वष करते है और न वूमरे से मोह हो दिखाते है। ममम्नि शम्याङ्कर पापिता या ममन्ना मालगम्प्रदाया । वारकामधेनुः ग्बल गारनना मृतप्रदात्री मुनगमननाः ।२६
प्रयं-यर वाग्गीप कामधेन जो कि हर हालत में मङ्गल कारक है वह घाम के प्रकों के ममान मज्जनों की कृपा से पोषण पाती है तो बलके मम्पक में प्रोर भी अधिक दुधार बन जाया करती है, निर्दोष होकर पहले से भी ज्यादा लाभदायक सहज में हो हो जाती है।
अम्मन्प्रयास प्नदुपाजनाय भवेन्पयः पातु मिहान्युपायः । कस्याप्यहोवन्मवदेव तम्या: पग जलौका इवरक्तपा म्यात् ।२७