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मोगों का भी मंमगं मान के साथ में होना चाहिये किन्तु जहर के माय मा के संयोग मरोखे होनेवाले दुष्ट के साप में तो किसी का भी मेल प्रमटा नहीं होता। एकम्य नौम्याय महा मधाला पाम्य वागेवमिहा सिधाला । पदयानिपगयणोऽनि दाबाय लोकेषु चमकरोति ।२२
प्रयं-सज्जन प्रारमी को बाणो हमेशह मृत सरोखी सब को मुग्व देने के लिये होती है किन्तु दुर्जन पुरुष की बोली इस भूतल पा तन्नवार को धार के समान होती है जिसका जन्म दूसरों के ममनंदद करने के लिये दवा करता है जो कि लोगों में अपना नमस्कार दव के लिये ही दिखाती है।
दादेव मृद्री प्रथिनाऽऽदिमम्य बाह्य ऽन्तरप्युनम भावनम्य । परम्प घोण्याफलवकटांग-न्तम्वेन पनि हिम्म्वधोग ।२३
प्रपं-पहिले हो बताये गये हुये सज्जन को चेष्टा तो प्रन्तजमे पोर बाहिर में भी दाव मरोवो कोमल और मोठी होतो
क्योंकि पर उसको भावना सबका भला करनेरूप से उत्तम एका करती है। किन्तु दूसरे नम्बर पर कहे हये दुर्जन को प्रवृत्ति तो पन्तरङ्ग में कठोरता को लिये हुये बदरी फल के समान सिर्फ बाहिर मे हो मुहावनी दोन्वा करती है। मन्योगुण ग्राहकां प्रयानि दोषग्रहो दर्जन एष भानि । निमर्गनम्नम्य नथैव जातिः गेषाय कः कोऽत्र च तोषतातिः ।२४