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है परन्तु अपने पापके बड़े भारी गुरण को भी -ह गुग्ण नहीं गिना करता, अपने गुण पर जिसे सन्तोष ही नहीं होता। सायं तो पह कि किसी दूसरे का दोष तो जिमको दृष्टि मे कभी प्राता हो नहीं, गुरणों को हो देखकर उन्हें प्राण किया करता है. वह मज्जन इस दुनिया में बना रहे। अम्मकमांगीनिव हा नाय भनेन पयः पातुमिना पायः । कम्पाप्यही बात्मवादा तम्या: पगजलीका इलाग्नमा म्यान १९
प्रयं-हमाग काम गाय के ममान अमन पिणो वाणी को बटोरने का है हम पर फिर कोई तो कदर को भाति महा दूध पाने की चेष्टा करे मोर दूमग जाक के समान उमक पन का हो पामा बना हे यह तो अपना काम है। के म्मो वयं निपटन हाणां कतव्यताया विषये व वाणा: । यः मम्मवित्रीबह यान्य हानि यथा मलीक ग्वना विदानी १२०
प्रयं-चों के ममान निष्कपटो ( मन लोग या बेग. कोमनो कपडा , के बोडो लोगों के कार्य के बारे में तो हम करतो क्या मते है जिनमे कि इस दुनिया में बढ़ धान्य हानि । दूमर २ लोगों का बिगाड़ या पनाज का नाT ) हो होना गम्भव है। योगोऽस्तु शिष्टं न महामदाद नीम्य यदन्पयमा प्रमाद । गरेण नम्या दिव मादकम्य दृष्ट न माद तु कदापि कम्य । २१
प्रयं-जिस प्रकार पानी का ममागम दूध के माय में होना है वह पानी की उन्नति के लिये हवा करता है उसी प्रकार हम