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________________ ५८ युगवीर-निबन्धावली श्रेणिक मावद भेरीबजवाते हुए परिजन और पुरजन सहित श्रीवीरचिनेन्द्रकी पूजा और वन्दनाको चले, उस समय एक मेंढक भी, जो नागदत्त श्रेष्ठीकी बावड़ी में रहता था और जिसको अपने पूर्वजन्मकी स्त्री भवदत्ता को देखकर जातिस्मरण हो गया था, श्रीजिनेन्द्रदेवकी पूजाके लिये मुखमे एक कमल दबाकर उछलता और कूदता हुमा नगरके लोगोंके साथ समवसरणकी ओर चल दिया । मार्गमे महाराजा श्रेषिकके हाथीके पैर तले पाकर वह मेढक मर गया और पूजनके इस सकल्प और उद्यमके प्रभावसे, मर कर मौधर्म स्वर्गमे महद्धिक देव हुआ। फिर वह देव समवसरणमे आया और श्रीगणधरदेवके द्वारा उसका चरित्र लोगोको मालूम हुआ। इससे प्रगट है कि समवसरणादिमे जाकर तिर्यच भी पूजन करते और पूजनके उत्तम फलको प्राप्त होते है। ___ समवसरणको छोडकर और भी बहुतसे स्थानो पर तिर्यंचोंके पूजन करनेका कथन पाया जाता है । पुएबास्त्रब और पाराधनासारकथाकोशमे लिखा है कि धाराशिव नगरमे एक बबी थी,जिसमे श्रीपार्श्वनाथ स्वामीकी र नमयी प्रतिमा एक मजूषेमे रक्खी हुई थी। एक हाथो, जिसको जातिस्मरण होगया था, प्रतिदिन तालाबसे अपनी सू डमे पानी भरकर लाता और उस बैंबीकी तीन प्रदक्षिणा देकर बह पानी उसपर छोउता और फिर एक कमलका फूल चढाकर पूजन करता और मस्तक नवाता था। इस प्रकार वह हाथी श्रावकधर्मको पालता हुया प्रतिदिन उस प्रतिमाका पूजन करता था। जब राजा करकडुको यह समाचार मालूम हमा, तब उसने उस बँबीको खुदवाया और उसमेंसे बह प्रतिमा निकली । प्रतिमाके निकलने पर हाथीने सन्यास धारण किया और अन्तमे वह हाथी मरकर सहस्रारस्वर्गमे देव हुआ । इसी प्रकार तियंचोंके पूजन-सबधमे और भी अनेक कथाएँ हैं। जब तियंच भी पूजन करते पार पूजनके उत्तम फलको प्राप्त होते हैं, तब ऐसा कौन मनुष्याहो
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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