SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन-पूजाधिकार मीमासा ५६ सकता है कि जिसको पूजन न करना चाहिये और जो भावपूर्वक जिनेन्द्रदेवका पूजन करके उत्तम फलको प्राप्त न हो ? अभिप्राय यह है कि प्रात्महितचिन्तक सभी प्राणियोंके लिये पूजन करना श्रेयस्कर है । इसलिये गृहस्थोको अपना कर्तव्य समझकर अवश्य ही नित्यपूजन करना चाहिये । पूजन के भेद पूजन कई प्रकारका होता है । श्रादिपुराण, सागारधर्मामृत, धर्मसंग्रहश्रावकाचार, चारित्रसार आदि ग्रन्थोंमे मिस्य', अष्टान्हिकर, ऐन्द्रध्वज 3, चतुर्मुख', और कल्पद्रुम", इसप्रकार पूजनके 9 नित्यपूजन का स्वरूप प्रागे विस्तार के साथ वर्णन किया गया है । २- ३ जिनाच क्रियते भव्यर्या नन्दीश्वर पर्व रिग । किसी सेन्द्राद्यं साध्या त्वन्द्रध्वजो मह || मागारधर्मा० अर्थात् नन्दीश्वर पर्व मे ( आषाढ, कार्तिक और फाल्गुरण इन तीन महीनो के अन्तिम आठ आठ दिनोमे) जो पूजन किया जाता है, उसको हिक पूजन कहते है और इन्द्रादिकदेव मिलकर जो पूजन करते हे, उसको 'ऐन्द्रध्वज' पूजन कहते है । ४ महामुकुटबद्धस्तु क्रियमाणो महामह । चतुर्मुख स विज्ञेय सर्वतोभद्र इत्यपि ।। - - श्रादिपुराण भक्त्या मुकूटबद्धौर्या जिनपूजा विधीयते तदाख्या सर्वतोभद्र - चतुर्मुख - महामहा ॥ - सागारध० अर्थात् - मुकुटवद्ध ( मांडलिक ) राजाओोके द्वारा जो पूजन किया जाता है, उसके नाम 'चतुमु' ख', 'सर्वतोभद्र' और 'महामह' है । ५ दत्वा किमिच्छुक दान सम्राभिर्य प्रवर्त्यते । कल्पवृक्षमह सोऽय जगदाशात्रपूरण || प्रादिपुराण किमिच्छन दानेन जगदाशा प्रपूर्य य ·
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy