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________________ ___३१ हमारी यह दुर्दशा क्यो? यह होता है कि खाया-पीया कुछ भी शरीरको नहीं लगता और अनेक प्रकारके अजीर्णादि रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जो कभी कमी बडी भयकरता धारण कर लेते हैं और प्राण ही लेकर छोड़ते हैं। अग्रेज लोग प्राय नियमपूर्वक ठीक और नियत समयपर भोजन करते हैं, अपने डाक्टरोकी आज्ञाको बडे आदरके साथ शिरोधार्य करते हैं और बडे यत्नके साथ स्वास्थ्य-रक्षाके नियमोका पालन करते हैं, यही वजह है कि उनको रोग बहुत कम सताते हैं और वे प्राय हृष्ट पुष्ट तथा बलिष्ठ बने रहते हैं। हम लोगोने वैद्यकशास्त्रमे निष्णात वाग्भट्ट जैसे वैद्यराजोंके वाक्योकी अवज्ञा की-न उनको पढा और न तदनुसार आचरण किया और स्वास्थ्यरक्षाके नियमोसे उपेक्षा धारण की। उसीका यह फल हा कि भारतवर्ष में निर्बलताने अपना अड्डा जमा लिया और म दिन पर दिन निर्बल तथा निस्तेज होकर प्राय किसी भी कार्य करनेके योग्य न रहे । हमारी इस निर्बलताके सक्षेपसे चार कारण कहे जा सकते हैं - पहला पैतृक निर्बलता अर्थात् माता और पिताके शरीरका निर्बल होना, दूसरा स्वास्थ्यरक्षाके नियमोसे उपेक्षा धारण करना, तीसरा बाल्यावस्थामे अनेक खोटे मार्गोसे कच्चे वीर्यका स्खलित होना,और चौथा अच्छी खुराक Food भोज्य) का न मिलना । इन कारणोमे यद्यपि पहला कारण, जिसकी उत्पत्ति भी अन्य तीन कारणोंसे ही है, हमारे प्राधीन नही है-अर्थात् माता-पिताकी शारीरिक निर्बलतामे उनकी भावी सन्तान कुछ भी फेर-फार नही कर सकती, उनके शरीर में उसका असर अवश्य आता है, परन्तु इससे हमारी प्राय कुछ हानि नही हो सकती यदि हम अन्य तीन कारणोको अपने पास फटकने न देवे और विधिपूर्वक अच्छे पौष्टिक पदार्थोंका बराबर सेवन करते रहें। ऐसा करनेसे हमारी जन्मसे प्राप्त हुई सब निर्वलता नष्ट हो जावेगी और हम आगामीके लिये अपनी सन्तानको इस प्रथम कारण-जनित व्यर्थकी पीडासे सुरक्षित रखनेमें समर्थ हो सकेंगे।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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