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________________ ३२ . बुगवीर-निबन्धावली दूसरे कारणको बाबत ऊपर सकेत रूपमें बहुत कुछ कहा जा चुका है और यह विषय ऐसा है कि जिस पर बहुत कुछ लिखा जासकता है। परतु यहाँपर संक्षेपमे मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि स्वास्थ्य-रक्षाके नियम हम लोगोको दृढताके साथ पालन करने चाहिये और सर्वसाधारणको उन नियमोका ज्ञान कराने तथा उन नियमोका पालन करनेकी प्रेरणा करनेके लिये वैद्यकशास्त्रोको मथनकर आहार-विहारसम्वन्धी अत्यत सरल पुस्तके तय्यार कराकर सर्वसाधारणमे नि स्वार्थ भावसे उनका प्रचार करना चाहिए। यदि वाग्मट्टजीके निम्न श्लोककी छोटी बडी टीकाएँ कराकर अथवा अन्य आहार-विहार तथा पूरण दिनचर्या-सम्बन्धी पुस्तके तय्यार कराकर स्कूलोमे भरती कराई जावे तो उनसे बहुत बड़ा उपकार हो सकता है । वह श्लोक यह है कालाऽर्थ-कर्मणा योगा हीन-मिच्या-ऽतिमात्रिका । सम्यम्योगश्च विझेयो रोग्याऽऽरोग्यैक कारणम् ॥ इसका सामान्य अर्थ इतना ही है कि-'कालका हीनयोग, मिथ्यायोग तथा अतियोग, अर्थ ( पदार्थ ) का हीनयोग, मिथ्यायोग तथा अतियोग, कम (क्रियादि ) का हीनयोग, मिथगायोग तथा प्रतियोग, ये सब रोगोके प्रधान कारण है, और इन काल, अर्थ तथा कर्मका सम्यकयोग प्रारोग्यका प्रधान कारण है।' परन्तु काल, अर्थ और कर्मका वह हीनयोग, मिथ्यायोग, प्रतियोग और सम्यक्योग क्या है, उसे टीकायो द्वारा सप्रमाण स्पष्ट करके बतलानेकी जरूरत है, जिससे तद्विषयक ज्ञान विकासको प्राप्त होवे और जनताको सयोग-विरूद्धादिके रूपमे अपनी मिथ्याचर्याका भान हो सके। तीसरा कारण यद्यपि दूसरे कारणकी ही एक शाखा है और उसीकी व्याख्यामे प्राता है, फिर भी उसपर खासतौर से दृष्टि रखनेकी ज़रूरत है । बहुतसे बालक अपनी अज्ञानतासे बचपनकी प्रत्यत निन्दनीय खोटी प्रवृत्तियो ( Self destroying habits ) मे फंसकर हमेशाके लिये अपना सर्वनाश कर डालते हैं और फिर सार
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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