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________________ भारतकी स्वतन्त्रता, उसका झडा और कर्तव्य ४२१ दोषको समझा, स्वतन्त्रताका मूल्य प्रांका और उस मूल्यको चुकानेके लिये अहिंसाके साथ तप, त्याग तथा बलिदानका मार्ग अपनाया। परिणामस्वरूप जिन्हें घोर यातनाएँ सहनी पडी, महीनो-वर्षों जेलोंकी कालकोठरियोमें सडना पडा, सारे सुख-चैन और आरामको तिलाञ्जलि देनी पडो, सम्पत्तिका अपहरण देखना पडा और हृदयको व्यथित करनेवाली देशीय तथा आत्मीय जनोकी करुण पुकारो एवं कष्ट-कहानियोको सुनना पडा । साथ ही, देशसे निर्वासित होना पडा, गोलिया खानी पड़ी और फाँसीके तख्तोपर भी लटकना पड़ा। परन्तु इन सब अवस्थाप्रोमेसे गुजरते हए जो कभी अपने लक्ष्यसे विचलित नहीं हुए, वेदनायो तथा प्रलोभनोके सामने जिन्होने कभी सिर नहीं झुकाया, अहिंसाकी नीतिको नही छोडा, सतानेवालोके प्रति भी उनके हृदय-परिवर्तन तथा उनमें मानवताके सचारके लिये सदा शुभ कामनाएँ ही की, और जो अपने प्रणके पक्के, वचनके सच्चे तथा सकल्पमें अडोल रहे और जिन्होने सब कुछ गवाकर भी अपनी नथा देशकी प्रतिष्ठाको कायम रक्खा । यहाँ उन विभूतियोंके नामोको गिनानेकी जरूरत नहीं और न उन्हे गिनाया ही जा सकता है, क्योकि जो सुप्रसिद्ध विभूतियाँ हैं उनके नामोसे तो सभी परि. चित हैं, दूसरी विभूतियोंमें कितनी ही ऐसी विभूतियाँ भी हैं जो गुप्तरूपसे काम करती रही है और जिनका तप-त्याग एव बलिदान किसी भी प्रसिद्ध बडी विभूतिसे कम नहीं है। अकसर बडी विभूतियोको तो जेलमे बन्द रहते हए भी उतने कष्ट सहन नहीं करने पड़े हैं जितने कि किसी-किसी छोटी विभूतिको सहन करने पडे हैं । अत. यहाँ पर किसीका भी नाम न देकर उन सभी छोटी बडी, प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध विभूतियोको सादर प्रणामार्जाल समर्पित है जो भारतको मुक्तिके लिये बराबर प्रय न करती रही हैं और जिनके सत्प्रयत्नोंके फलस्वरूप ही देशको आज वह स्वतन्त्रता प्राप्त हुई है जिसके कारण भारतवासी अब आजादीके साथ खुले वातावरण मे
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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