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________________ ३६ भारतकी स्वतन्त्रता, उसका झंडा और कर्तव्य कोई एक हजार वर्षकी गुलामीके बाद भारत १५ अगस्त सन् १९४७ को स्वतन्त्र हुआ— उसकी गर्दन पर से श्रवाछनीय विदेशीशासनका जुना उतरा, उसके पैरोकी बेड़ियाँ हाथोकी हथकड़ियाँ कटी और शरीर तथा मन परके दूसरे बन्धन भी टूटे, जिन सबके कारण वह पराधीन था, स्वेच्छा से कही जा प्रा नही सकता था, बोल नही सकता था यथेष्टरूपमें कुछ कर नही सकता था और न उसे कही सम्मान हीं प्राप्त था । उसमे अनेक उपायोसे फूटके बीज बोए जाते थे और उनके द्वारा अपना उल्लू सीधा किया जाता था । साथ ही उस पर करों प्रादिका मनमाना बोझा लादा जाता था, तरह तरहके अन्याय-अत्याचार किये जाते थे, अपमानो-तिरस्कारोकी बौछारें पडती थीं और उन सबके विरोधमे जबान खोलने तकका उसे कोई अधिकार नही था । उसके लिये सत्य बोलना भी अपराध था । और इसलिये वह मजबूर था भूठ, चोरी, बेईमानी, घूसखोरी और ब्लैकमार्केट-जैसे कुकर्मो के लिये । इसीसे उसका नैतिक और धार्मिक पतन बडी तेजीके साथ हो रहा था, सारा वातावरण गदा एवं दूषित हो गया था और कही भी सुखपूर्वक साँस लेनेके लिये स्थान नही था । धन्य है भारतकी उन विभूतियोंको जिन्होंने परतन्त्रताके इस
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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