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________________ १२२ युगवीर-निबन्धावलो सांस ले सकेगे, यथेच्छ रूपमें चल फिर सकेंगे खुली आवाज से बोल सकेंगे, बिना सकोचके लिख-पढ सकेंगे. बिना किसी रोक-टोक के अपनी उन्नति एवं प्रगतिके साधनोवो जुटा सकेंगे। ऐसी स्वतन्त्रता किसे प्यारी नहीं होगी ? कौन उसका अभिनन्दन नहीं करेगा कौन उसे पाकर प्रसन्न नही होगा ? और कौन उसके लिये आनन्दोत्सव नही मनाएगा? यही वजह है कि उस दिन १५ अगस्तको स्वतन्त्रता दिवस मनानेके लिये जगह-जगह-नगर-नगर और ग्राम-ग्राममे-जन-समूह उत्सवके लिये उमडे पडा था, जनतामे एक अभूतपूर्व उत्साह दिखाई पड़ता था, लम्बे-लम्बे जलूस निकाले गये थे, तरह-तरह के बाजे बज रहे थे, नेताप्रो और शहीदोंकी जयघोषके नारे लग रहे थे, बालकोंको मिठाइयाँ बंट रही थी, कही कही दीन-दुखित जनोको अन्नवस्त्र भी बांटे जा रहे थे, घर-द्वार, सरकारी इमारते और मन्दिरबाजाररादिक सब सजाये गये थे उन पर रोशनी की गई थी~दीपावली मनाई गई थी और हजारो कैदी जेलोसे मुक्त होकर इन उत्सवोमे भाग ले रहे थे और अपने नेताअोकी इस भारी सफलता पर गर्व कर रहे थे और उन्हे हृदयसे धन्यवाद दे रहे थे। इन उत्सवोकी सबसे बड़ी विशेषता भारतके उस तिरगे भडेकी थी जिसका अशोकचक्रके साथ नव-निरिण हुआ है। घर घर, गलीगली और दुवान-दुकान पर उसे फहराया गया था। कोई भी सरकारी इमारत, सार्वजनिक सरथा और मदिर मस्जिदकी बिहिन ऐसी दिखाई नही पडती थी जो इस गष्ट्रीय पताकाको अपने सिर पर अथवा अपनी गोद में धारण दिये हा न हो। जलसोंमें बहतसे लोग अपने-अपने हाथोमें इस झडेको थामे हए थे, जिन्हें हाथोमें लेनेके लिये झडे नही मिल सके वे इस भडेकी मूर्तियो या चित्रोको अपनी-अपनी टोपियो अथवा छातियो पर धारण किये हुए थे। जिधर देखो उधर ये राष्ट्रीय झडे ही झड़े फहराते हुए नज़र आते
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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