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युगवीर-निबन्धावलो
होश आ गया. उसकी स्मृति काम करने लगी और इसलिये वह एक दम बोल पडा-
' इन चारोमे बडा दानी वह है जिसने बेबसीकी हालत मे पडे हुए बगाल के कालपी उतोको दो लाख रुपयेका अन्नदान किया है ।" अध्यापन - वह बडा दानी कैसे है? जरा समभाकर बतलाओ । और खासकर इस बातको स्पष्ट करके दिखलाओ कि वह घायल सैनिको के लिये ममपट्टीका सामान दान करनेवाले दानी से भी बड़ा दानी क्योक्र है ?
विद्यार्थी - मास्की उत्पत्ति प्राय जीवघात मे होती है । जो मासका दान करता है वह दूसरे निरपराध जीवोके घात मे सहायक होता है और इसलिये मानवतासे गिरकर हिसात्मक अपराधका भागी बनता है, जिससे उसका अपना उपकार न होकर ग्रपकार होता है । और जिन्हे मासभोजन कराया जाता है वे भी उम जीवघातके अनुमोदक तथा प्रकारान्तर से सहायक होकर अपराध के भागी बनते है । साथ ही, मास भोजनसे उनके हृदयमे निदयताकठोरता स्वार्थपरतादि-मूलक तामसी भाव उत्पन्न होता है, जो आत्मविकास में बाधक होकर उन्हे पतनकी ओर ले जाता है, और इसलिये मास-दान से मासभोजीका भी वास्तविक उपकार नही होता - खासकर ऐसी हालतमे जब कि अन्नादिक दूसरे निर्दोष एव सात्विक भोजनोसे पेट भले प्रकार भरा जा सकता है और उससे शारीरिक बल एव बौद्धिक शक्तिमे भी कोई बाधा उपस्थित नहीं होती । प्रत ऐसे दानका पारमार्थिक अथवा ग्रात्मोपकार - साधनकी दृष्टिसे कोई अच्छा फल नही कहा जा सकता - भले ही उसके करनेवालेको लोक्मे स्वार्थी राजा द्वारा किसी उपरी पद या मन्सबकी प्राप्ति हो जाय । जब पारमार्थिक अथवा आत्मोपकारकी दृष्टि से ऐसे दानका कोई बडा फल नही होता तो ऐसा दान देनेवाला बडा दानी भी नही कहा जा सकता ।
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