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________________ बडा दानी कौन? ४०३ का सामान दान करता है और चौथा बगालके अकालपीड़ितो एव अन्नाभावके कारण भूखसे तडप-तडपकर मरनेवाले निरपराध प्रारिणयोको प्राणरक्षाके लिये दो लाख रुपयेका अन्नदान करता है। बतलायो इन चारोमे बडा दानी कौन है? अथवा सबके दान-द्रव्यकी मालियत दो लाख रुपये समान होनेसे सब बराबरके दानी हैं-उनमे कोई विशेष नही, बडे-छोटेका कोई भेद नही है ?' यह सुनकर विद्यार्थी कुछ भौचकसा रह गया और उसे शीघ्र ही यह समझ नहीं पड़ा कि क्या उत्तर दूं, और इसलिये वह उत्तरकी खोजमे मन-ही-मन कुछ सोचने लगा--दूसरे विद्यार्थी भी सहसा उसकी कोई मदद न कर सके--कि इतनेमे अध्यापकजी बोल उठे_ 'तुम तो बडी सोचमे पड गये हो । क्या तुम्हे दानका स्वरूप और जिन कारणोसे दानमे विशेषता आती है-अधिकाधिक फलकी निष्पत्ति होती है-उनका स्मरण नहीं है ? और क्या तुम नही जानते कि जिस दानका फल बडा होता है वह दान बडा है और जो बड़े दानका दाता है वह बड़ा दानी है ? तुमने तत्त्वाथसूत्रके सातवें अध्याय और उसकी टीकामे पढा है --स्व-परके अनुग्रह-उपकारके लिये जो अपनी धनादिक किसी वस्तुका त्याग किया जाता है उसे 'दान' कहते है और दानमे विधि, द्रव्य, दाता और पात्रके विशेषसे विशेषता आती है-दानके तरीके, दानमे दी जानेवाली वस्तु, दाताके परिणाम और पानेवालेमे गुण-सयोगके भेदसे दानके फलमे कमी-वेशी होती है', तब इस तात्विक दृष्टिको लेकर तुम क्यो नही बतलाते कि इन चारोमे दान-द्रव्यकी समानता होते हुए भी कौन बड़ा है ? अध्यापकजीके इन प्रेरणात्मक शब्दोको सुनकर विद्यार्थीको १ अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसर्गो दानम् ॥ ३८ ॥ विधि-द्रव्य-दात-पात्र-विशेषात्तद्विशेष ॥३६॥ (त० सू०)
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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