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________________ ४०२ युगवीर-निबन्धावली नही है, वह उससे भी बड़ा है जो पुरस्कारमे प्राधे राज्यकी घोषणाको पाकर अपनी जान पर खेला हो और ऐसे ही किसी ड्रबते हए राजकुमारका उद्धार करनेमे समर्थ होकर जिसने आधा राज्य प्राप्त किया हो। इसी तरह सैनिको द्वारा जब लूट-खसोटके साथ कत्लेआम हो रहा हो तब एक राजाकी अभयघोषणाका उस समय रुपयोमे कोई मूल्य नही ऑका जा सकता-वह लाखो-करोडो और अर्कोखों रुपयोके दानसे भी अधिक होती है, और इसलिये एक भी रुपया दान न करके ऐमी अभय-घोषणा-द्वारा सर्वत्र अमन और शान्ति स्थापित करनेवालेको छोटा दानी नही कह सकते । ऐसी ही स्थिति नि स्वार्थ-भावसे देश तथा समाज सेवाके कार्योंमे दिन-रात रत रहनेवाले और उसीमे अपना सर्वस्व होम देनेवाले छोटी पूजीके व्यक्तियोकी है । उन्हे भी छोटा दानी नहीं कहा जा सकता । अभी अध्यापक वीरभद्रजीकी व्याख्या चल रही थी और वे यह स्पष्ट करके बतला देना चाहते थे कि 'क्रोधादि कषायोके सम्यक् त्यागी एक पेसेका भी दान न करते हुए कितने अधिक बडे दानी होते है कि इतनेमे उन्हे विद्यार्थीके चेहरे पर यह दीख पडा कि 'उसे बड़े दानीकी अपनी सदोष परिभाषा पर और अपने इस कथन पर कि उसने बडे-छोटेके तत्त्वको खूब अच्छी तरहसे समझ • लिया है कुछ सकोच तथा खेद होरहा है, और इसलिये उन्होने अपनी व्याख्याका रुख बदलते हुए कहा--- ___'अच्छा, अभी इस गभीर और जटिल विषयको हम यही रहने देते हैं-फिर किसी अवकाशके समय इसकी स्वतन्त्र-रूपसे व्याख्या करेंगे और इस समय तुम्हारी समान-मालियतके दान-द्रव्यकी बातको ही लेते हैं । एक दानी सेनाके लिये दो लाख रुपयेका मास दान करता है, दूसरा आक्रमणके लिये उद्यत सेनाके वास्ते दो लाख रुपयेके नये हथियार दान करता है, तीसरा अपने ही आक्रमणमें घायल हुए सैनिकोकी महमपट्टीके लिये दो लाख रुपयेकी दवा-दारू
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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