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________________ सेवा-धर्म ३३६ शक्तिके अनुसार कर सकता है। नौकर अपनी नौकरी, दुकानदार दुकानदारी, वकील वकालत, मुख्तार मुख्तारकारी, मुहरिर मुहरिरी, ठेकेदार ठेकेदारी, ओहदेदार ओहदेदारी, डाक्टर डाक्टरी, हकीम हिकमत, वैद्य वैद्यक, शिल्पकार शिल्पकारी, क्सिान खेती तथा दूसरे पेशेवर अपने-अपने उस पेशेका कार्य और मजदूर अपनी मजदूरी करता हुआ उसीमेसे सेवाका मार्ग निकल सकता है। सबके कार्योंमें सेवाधर्मके लिये ययेष्ट अवकाश है-गु जाइश है । ___ सेवाधर्मके प्रकार और मार्ग अब मैं सक्षेपमे यह बतलाना चाहता हूँ कि सेवा-धर्म कितने प्रकारका है और उसके मुख्य मार्ग कौन-कौन हैं । सेवा धर्मके मुख्य 'भेद दो है-एक क्रियात्मक और दूसरा प्रक्रियात्मक । क्रियात्मकको प्रवृत्तिरूप तथा प्रक्रियात्मकको निवृत्तिरूप सेवाधर्म कहते हैं । यह दोनो प्रकारका सेवाधर्म मन, वचन तथा कायके द्वारा चरितार्थ होता है, इसलिये सेवाके मुख्य मार्ग मानसिक, वाचिक और कायिक ऐसे तीन ही हैं-धनादिकका सम्बन्ध कायके साथ होनेसे वह भी कायिकमे ही शामिल है। इन्ही तीनो मार्गोंसे सेवाधर्म अपने कार्यमे परिणत किया जाता है और उसमें आत्म-विकासके लिये सहायक सारे ही धर्म-समूहका समावेश हो जाता है। निवृत्तिरूप सेवाधर्ममे अहिसा प्रधान है। उसमे हिंसारूप क्रियाका-सावद्य-कर्मका-अथवा प्राणव्यपरोपरगमें कारणीभूत मन वचन-कायकी प्रमत्तावस्थाका तथा सकल्पका त्याग किया जाता है। मन-वचन-कायकी इद्रिय-विषयोमे स्वेच्छा-प्रवृत्तिका भले प्रकार निरोघरूप 'गुप्ति', गमनादिकमें प्राणि-पीडाके परिहाररूप 'समिति', क्रोधकी अनुत्पत्तिरूप 'क्षमा', मानके अभावरूप 'मार्दव',माया अथवा योगवक्रताकी निवृत्तिरूप 'आर्जव', लोभके परित्यागरूप 'शीच', अप्रशस्त एव असाधु वचनोंके त्यागरूप 'सत्य', प्राणव्यपरोपण और
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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