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________________ हम दुखी क्यो हैं ? २७६ अनुसार बाह्य पदार्थोंके सम्बन्ध पर आधार रखती है। यदि ऐसा न माना जाय, बल्कि उन बाह्य पदार्थोंको ही स्वय सुखका मूलकारण समझ लिया जाय तो चार रोटी खानेवालेको आठ रोटा खा लेनेसे डबल सुख होना चाहिये और जाडोके लिहाफ वगैरह भारी गर्म कपडोको सख्त गर्मी के दिनोमे प्रोढने पहननेसे जाडो-जैसा आनन्द मिलना चाहिये । परन्तु मामला इससे बिल्कुल उलटा है-आठ रोटी खा लेनेसे उस आदमीकी जान पर ना बने, पेट फूल जाय, दर्द या कै । वमन) होने लगे अथवा चूर्ण-गोलीकी जरूरत खडी हो जाय, र जाडोके वे भारी भारी गर्म कपडे गर्मियोमे पहननेप्रोढने से चित्त एकदम घबरा उठे और सिरमे चक्कर आने लगे । इससे स्पष्ट है कि बाह्य पदार्थोंमे स्वय कोई सुख नही रक्खा है और न वेदना के पैदा होते रहने और उसका इलाज या उपचार करते रहने ही कोई सुख है, बल्कि उसके पैदा न होने और इलाज तथा उपचारकी जरूरत न पड़नेमे ही सुख है । वास्तवमे यदि ध्यान से देखा जाय तो पर-पदार्थोंमे सुख है ही नही, उनमे सुखका प्राधार एक मात्र हमारी कल्पना है और उस कल्पित सुखको सुख नही कह सकते, वह सुखाभास है - सुखसा दिखलाई देता है - मृगतृष्णा है । और इसलिये पर - पदार्थोंमे सुख कल्पित करनेवालोकी हालत ठीक उन लोगो-जैसी है जो एक पर्वतकी दो चोटियोंके मध्य स्थित सरोवरमे किसी बहुमूल्य हारके पीछे गोते लगाते और लगवाते हुए बहुत कुछ थक गये थे, उनको पानीमे वह हार दिखलाई तो जरूर पडता था लेकिन पकडनेपर इधर से उधर उचक जाता था— हाथमे नही आता था, और इसलिये वे बहुत ही हैरान तथा परेशान थे कि मामला क्या है ? इतनेमे एक जानकार शख्सने आकर उन्हे बतलाया था कि 'हार उस सरोवरमे नही है, और इसलिये कोटि वर्ष- पर्यन्त बराबर गोते लगाते रहने पर भी तुम उसे नहीं पा सकते, वह इस सरोवरके बहुत
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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