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________________ २७८ युगवीर-निबन्धावली पर-पदार्थ तीन कालमें भी अपना नहीं हो सकता और न जड कमी चेतन बन सकता है, उसे अपना समझकर सुखकी कल्पना कर लेना भूल है, उसके सयोगके साथ वियोग लगा हुआ है-जिसका कभी संयोग होता है उसका एक न एक दिन वियोग जरूर होता है-चाहे वह हमसे पहले बिछुड जाय और या हम ही उससे पहले चलते बने, गरज वियोग जरूर होता है । और जिसके सयोगमे सुख मान लिया जाता है अथवा यो कहिये कि माना हा होता है उसके वियोगमे नियमसे दुख उठाना पडता है। इसलिये ऐसे सब ही परपदार्थ प्रतको दुखके कारण होते हैं । बीचमे भी किसी चिन्ता आदिके उपस्थित हो जानेपर उनका सारा सुख हवा हो जाता अथवा काफूर बन जाता है। अपनी ही खास स्त्रीकी बाबत यदि यह मालूम हो जाय कि वह अब बदचलन या दु शीला हो गई है-गु-त व्यभिचार करती हैतो उसके साथ मिलने जुलनेका आनन्द जाता रहे, एक मित्रकी बाबत यदि यह पता चल जाय कि वह परोक्षरूपसे अपनेको हानि पहुँचाता है तो मित्रका सारा मजा किरकिरा हो जाय, और यदि एक अच्छे प्यारे सुन्दर तथा सूडोल बने हए मकानकी बाबत बादको यह बात दिलमे बैठ जाय कि वह मनहूस है-अशुभ अथवा अमागलिक हैतो वह उसी वक्तसे अपनेको काटने लगे और उसमे रहना भारी पड़ जाय । दूसरे चेतन-अचेतन पदार्थोका भी प्राय ऐसा ही हाल है। इसी तरह उनको यह भी खबर नही कि बाह्य पदार्थोंमे जो सुखका अनुभव होता है वह खास उन पदार्थोंका अथवा उनसे उत्पन्न होनेवाला सुख नहीं, बल्कि उनकी प्राप्तिके लिये हमारे अन्तःकरणमे जो एक प्रकारको तडप, वेदना या तृष्णा हो रही थी उसकी यत्किचित् शान्तिका सुख है । यदि वैसी कोई वेदना, तडप या तृष्णा न हो, तो उन पदार्थोके सम्बन्धसे कुछ भी सुखका अनुभव नही किया जा सकता, और इसीलिये वह सुखकी अनुभूति प्राय' वेदनाके अनुकूल होती है-वेदनाको कमी-बेशी आदिकी अवस्था
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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