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________________ १०६ जैनियोका अत्याचार फल भोग रहे हैं। इससे साफ प्रगट है कि जैनियोकी वर्तमान दशा उन अत्याचारोका फल नही है जो जैनियों पर हुए, बल्कि उन अत्याचारोका फल है जो जेनियोंने दूसरो पर किये और जो परस्पर जैनियोने एक दूसरे पर किये । सच है, मध्नुयोंका अपने ही कर्मोंसे पनन और अपने ही कर्मोसे उत्थान होता है । जिन जैनियोके ज्ञान और आचरणकी किसो समय चारो ओर धाक थी, जिनके सर्वप्राणिप्रेमने अनेकवार जगतको हिला दिया, और जिनका राज्य समुद्र पर्यन्त फैला हुआ था, आज वे ही जैनी बिल्कुल ही रक बने हुए हैं । यह सब जैनियोके अपने ही कर्मोका फल है। इसके लिए किसीको दोष देना-किसी पर इलजाम लगाना-भूल है । जैनियोकी वर्तमान स्थिति इस बातको बतला रही है कि, उन्होने ज़रूर कोई भारी अत्याचार किये हैं, तभी उनकी ऐसी शोचनीय दशा हुई है। __जैनियोने एक बडा भारी अपराध तो यह किया है कि इन्होने दूसरे लोगोको धर्मसे वचित रक्खा है । ये खुद ही धर्मरत्नके भडारी और खुद ही उसके सोल प्रोप्राईटर (अकेले ही मालिक) बन बैठे। दूसरे लोगोको--दूसरे समाज-वालो तथा दूसरे देशनिवासियोकोधर्म बतलाना, धर्मके मार्ग पर लगाना तो दूर रहा, इन्होने उलटा उन लोगोसे धर्मको छिपाया है । इनकी अनुदार-दृष्टिमे दूसरे लोग प्राय बडी ही घृणाके पात्र रहे है, वे मनुष्य होते हुए भी मनुष्यधर्मके अधिकारी नहीं समझे गये । यद्यपि जैनी अपने मदिरोमें यह तो बराबर घोषणा करते रहे कि 'मिथ्यात्वके समान इस जीवका कोई शत्रू नहीं है, मिथ्यात्व ही ससारमे परिभ्रमण करानेवाला और समस्त दु खोका मूल कारण है । परन्तु मिथ्यात्वमे फँसे हए प्राणियोपर इन्हे जरा भी दया नहीं आई, उनकी हालत पर इन्होने जरा भी तरस नही खाया और न मिथ्यात्व छुडानेका कोई यत्न ही किया। इनका चित्त इतना कठोर हो गया कि दूसरोंके दुख सुखसे इन्होंने कुछ सम्बन्ध ही नही रक्खा ।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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