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दोंडसों गाया 'स्तवन
(२३) कहा छे. ते जेमं आ लोकना सुखने 'अर्थे सूर्या में पूजा तेहने पुचि तथा पञ्छा एचे शब्द परलोक वाचक छे एहेचु- देखाडे छे. पहेले भव पूरव कहे, ज्ञाता. दुर्दर संबंध; लालरे। पच्छा कहुअ विषय कह्या, वली मृगापुत्र प्रबंध; लालरे । तुज०७॥
अर्थ-पहेले भव के० गतभव, पूरवभव के० पूरव शब्दे कहे छे. कोण कहे छे? ते कहे छे. ज्ञाता के० छद्रं अंग ज्ञातासूत्र कहे छे. ददुर संबंध क० नंद मणीआर देडका थया. ते संबंधां एटले देहकाना संबंधमा पूर्व शब्दे गतभव छः एम ज्ञातासूत्र कहेछे. इतिभाव. तथा च ज्ञातासूत्र-'पुचि पिणं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स' । इत्यादि. ए रीते पूर्व शन्दे गतभव कहो. हवे पच्छा शब्दे आगलो अनागतभव देखाडे छे. पदने एक देशे पदना समुदायने उपचारीए माटे पच्छाकडुअ के० पछी कडुआ विपाक आवे. एषा विषय कहा छे. क्या कह्या छे? ते कहे छे. वली के० पूर्व शब्दनो अर्थ ज्ञाताए देखायो। तेनी अपेक्षाए वली मृगापुत्र प्रबंध के० मृगापुत्रना संबंधमां कह्यांछे, यतः-अम्मताय मए भोगा भुत्ता विसफलोवमा पच्छा कडुअविवागा अणुवंधुदुहावहा, अर्थ-अम्मंताय के० हे माता पिता, मए के० में, भोगा के० भोग, भुत्ता के० भोगव्या. ते कहेवा छे? विसफलोषमा के० विषफलनी उपमाए छे. पच्छा के० पछी आवते भवे, कडुअविवागा के०कडवा विपाक छे जेहना, अणुवंधु के० परंपराए, दुहावहा के० दुःखना आपनार छे.
एरीते श्रीउत्तराध्ययनमा मृगापुत्रे मातपिताने का. एम पच्छा शब्दे पण परभवनो अर्थ छे. एटले पूर्व पच्छा शब्द ते मूरियामने आभव वाचक नथीः ॥७॥
हवे कोइ कुमति कहे छे जेतमें पूर्व पच्छानो जे रीते अर्थ-कर्यो, तेम अर्थ करता आ भव तो न आंन्यो तेने उत्तर दे छे.
आगमेसीभद्दा कडा, गइठिई कल्लाणा देव; लालरे । तस पूरब पच्छा कहे, निहुँ काले हित जिन सेव; लालरे॥ तुजा .
अर्थ-आगमेसिभद्दा के० आगल मनुष्यावतार पामीने मोक्ष जावं छः एवा कबा के तथा गइडिई कल्लाणा के० अहींयां कल्याण शब्द वेउने जोडीए. एट ए अर्थ-गइकल्लाणा ठिइकल्लाणा । इति. त्यहां गइ कल्लाणा के० गति 'आवती मनुष्य गतिने विषे कल्याण के जेहने, तथा ठिइकल्लाणा के० स्थिति जे देवतानो भव, त्यां'पर्ण कल्याणछे. एवा देव के० सम्यग्दृष्टि देवता सूत्रे वखाण्या छे. यत:-'गइकल्लाणा ठिइकल्लाणा आगमेसिमदा' इति ॥ आगमेसिभद्दा के० आगले भद्रकारीछे. ते माटे त्रणे भव आव्या. जे माटे सूर्याम देव सम्यग्दृष्टि छे, ते भगवंत दाढा तथा जिन प्रतिमा पूजतां, वस पूरव पच्छा कहे के. ते देवने पूरव पच्छा कयां थकी, त्रिहुं काले हित के त्रणे काळे हित जाणबुं. जिन सेव के० परमेश्वरनी सेवा एवी छे.
वच सुरेंजश्चामीकर