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( २४ )
महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत.
हवे व्यतिरेके करी पूर्व पच्छा शब्दे अर्थापत्तिए त्रिकाल लेइए एम देखाडे छे. जस पूरव पच्छा नहीं, मध्ये पण तस संदेह; लालरे एम पहले अंगे कां, छे सुधो अर्थ ते एह; लालरे || तुज० ९ ॥
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अर्थ-जस पूरव पच्छा नहीं के० जेने पूर्वे तथा पछी नथी. मध्ये पण तस संदेह के० तेने वचमां पण संदेह जाणवो, एटले ए भाव जे, जेहने पूर्व अने पछी नथी, तेहने मध्ये संदेह. ते वारे एम आयु जे जेने पूर्व तथा पछी छे, तेहने मध्ये पण अवश्य छे. एम पहेले अंगे के० श्रीआचारांग सूत्रमां एम कझुंछे. यतः - "जस्स नत्थि पुरापच्छा मज्झे तस्स कुभो सिया ।" इति . जस्स नत्थि के० जेने नथी, पुरापच्छा के० पूर्व अने पछी, मन्झे तस्स कुओ सिया के ० तेने मध्ये पण क्यांथी होय ? इति आचारांगे, छे सुधो अरथ ते एह के० ए अर्थ सुधो छे. पांशरो के तेथ सूर्याभने त्रिकाल हितकारी जिनपूजा छे. इति भाव. इति गाथा ॥ ९ ॥
वे कोइ वली कहे छे जे वांदवाने अधिकारे 'पेच्चाहियाए' कहुँ छे ते परभव हित आवे. पण अहींयां पच्छा शब्द छे, माटे आभवज हितकारी छे तेने उत्तर दे छे.
पच्छा पेच्चा शब्दनो, जे फेरे कहे ते दुट्ट; लालरे ।
शब्द तणी रचना घणी, पण अरथ एक छे पुट्ठ; लालरे ॥ तुज० १० ॥
अर्थ - पच्छा अने पेचा ए वे शब्दनो जे फेर कहे के० अर्थ शब्दगम्यमान छे माटे जे फेर अर्थ करे छे, ते दुड्ड के० दुष्ट जाणवा, जे माटे, शब्दतणी रचना घणी के० शब्दरचना यद्यपि धणी छे, पण अर्थ तो एकज छे. एवकार गम्यमानछे. पुट्ट के० • पुष्ट अर्थछे. इति गाया अक्षरार्थ. हवे भावार्थ- जे पेच्चानो अर्थ जेम परभव छे, तेम पच्छानो अर्थ पण परभवज छे एम जाणवुं, पण शब्द फेर रचनाए भूलवुं नहीं. जेम वदनानाज अधिकारमां क्यहांक तो || पेच्चाहियाए || एम कर्तुं छे, तथा क्यहांक तो 'इह भवे वा परभवे वा आगामियत्ता भविस्सइ ' एवो पाठछे, ते माटे परभव अने पेवा, ए वे शब्दमां जेम फेर नथी, तेम पच्छा पेचा शब्दमां पण फेर न जाणवो. ते पच्छा शब्दे पच्छा कडुअविarit इत्यादिक ठामे परभवनो अर्थ संभव देखाड्यो छे ॥ १० ॥
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ए रायपसेणी सूत्रो पाठ हतो, ते चर्चा युक्तिना उत्तर वाल्या. हवे सूरियाभ देवता आगल शुं करे ? ते कहे छे.
वांची पुस्तक रत्ननां, हवे लेइ धरम व्यवसाय; लालरे । सिद्धायतने ते गंया, जिहां देवळंदनो ठाय ॥ लालरे ॥ तु० ॥ ११ ॥