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________________ महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. पूरव पच्छा शब्दथी, नित्य'करणी जाणे सोय; लालरे। समकित दृष्टि सबहे, ते द्रव्यथकी कम होय? लालरे ॥ तुज०४॥ अर्थ-पूरव पच्छा शब्दयी के पूर्व अने पछी हितकारी / ? एवं पूछयु, अने तेओए. " पूरव अने पछी एज हितकारी छे" एवं क. ते वारे पूजा विनानो शेषकाल कीयो रखो.? ते माटेज, सोय के० ते सूर्याभदेवता एम जाणे जे मारे नित्यकरणी सदा कर्तव्य छे. एटछे सदा काल पूजा करी एम व्यु. इति भावार्य. वली कोइक कुमति बोल्यो के "ए तो द्रव्यथी बाह्यथी पूजा करी पण भावथी नथी करी." इति. तेहने उत्तर देछे जे, समकित दृष्टि जे होय ते सहहे के० धर्म एह, सदहे, ते द्रव्यथी केम होय ? एटले समकिती द्रव्ययी करे तो शुं श्रद्धामा न होय ? जेम पुत्र विवाहादिक. इति भाव. इति तूर्यगाथार्य ॥ ४ ॥ तेज हवे स्पष्ट करी देखाडे छे. द्रव्यथकी जे पूजीयां, प्रहरण कोशादि अनेक; लालरे । तेहथी बेड जूदां कहां, ए तो साचो भाव विवेक; लालरे ।तुज०५।। अर्थ-द्रव्यथकी जे पूज्या. पहरण के० शत्र, कोश के० भंडार आदि शब्दयी अनेक पूज्या, पण ते सर्वथी बेउ जे जिन प्रतिमा अने जिन दाढा, ते जूदाज कहां छे. जे कारणे प्रणाम, अथवा शकस्तवादिक वीजा.कोइ स्थानके कह्यां नयी. तथा सामानिक देवे उत्तर पाल्यो, तेवारे पण प्रतिमा तथा दाढाज पूजवापणे वताव्यां, अने फल पण एनांज बता. व्याः ते माटे प्रगटपणे वे जूदाज-कयां छे. ए तो साचो भाव के० ए भाव ते साचो विवेक के. वेहेचीने भिन्न भिनपणे कयो छे. इति गाथार्थ ॥५॥ ते उपर द्रव्य भावनु दृष्टांत कहे छे. चक्ररयण जिण नाणनी, पूजा जे भरते कीध; लालरे । ज्यम ते त्यम अंतर इहां, समकित दृष्टि सुप्रसिद्ध लालरे ॥तुज०६॥ अर्थ-जेम भरते के० भरतराजाए, चक्ररयणनी के० चक्ररत्ननी पूजा, तथा जिननाणनी के० ऋषभखामीना केवलज्ञाननी पूजा; एम पूजा पद वेउ ठामे जोडिए. ते की, के० करी. ज्यम ते के० जेम चक्रनी पूजा, द्रव्यथी आलोकलु उपकारी जाणी करी, अने ज्ञाननी पूजा ते भाषयी आलोक तथा परलोकतुं उपकारी जाणी करी, त्यम अंतर इहां के. अहींयां सूर्याम अधिकारे पण द्रव्य तथा भावर्नु' एम अंतर जाणवू. समकित दृष्टि सुपसिद्ध के० सम्यग्दृष्टि जीवने ए तो प्रसिद्ध छे. अर्थात् प्रगटछे. एटछे मिथ्यात्व जेना पदय माहे होय तेने ए वे वात जुदी न भासे. इति भाव. एटले कुमतियां समकित नथीं; एम पणं देखाडयु. इति गाथार्थ. ॥९॥ हवे कोइ कुमति कहे छे जे धन काढवाने अधिकारे 'हियाए मुहाएं' इत्यादिक पाठ
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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