SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२८) अर्थ-वली ते पोतानु एकाकीपणु थापवा माटे एम कहेछे जे गुरुनो प्रतिबंध गीताथनो प्रविध तया गच्छनो प्रतिबंध राखी ते प्रतिवंधे करीये केमके प्रतिबंध तेतो दुःखनो हेतु छे माटे प्रतिबंध कोइ साथे न करवो मात्र दर्शन ज्ञान चारित्र ए रत्नत्रयी आदरीयें चीजो कोइ कोइने तारणहार नथी आपे आप तरीजे के० पोतपोतानी मेले तरोयें. यत:-"अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कुडसामलि ।" इतिवचनात् ॥ ४ ॥ नवी जाणे ते प्रथम अंगमा, आदि गुरुकुल वासोरे । कह्यो न ते विण चरण विचारो, पंचाशकनय खासोरे ॥श्रीजिन०५॥ अर्थ-हवे तेने उत्तर आपेछे के ते एम नथी जाणता जे प्रथम अंगमां श्रीआचारांग सूत्रनी आदि के० धुरे गुरुकुलवासो के० गुरुकुलवास कम्यो छे. यतः-"मूयं मे आउसंतेणं, भगवया एवमक्खाय" एम ए मूत्रमांहे का जे मूय के० सांभल्यु मे के मुधर्मास्वामी जंबूपते कहे छ के में एम सांभल्यु छे साक्षात् पण करणाघाटे नहीं आउसंतेणं के० आमृशता भगवान वीरना चरण उपासता थकां सांभल्यु ए वचने करीने सुधर्माखामीय एम बताव्यु जे गुरुकुलवासें वसवू इतिभाव न के० नहीं ते विण के० ते गुरुकुलवास विना चरण के० चारित्र एम विचारो के० चिंतन करो एटले ए भाव जे गुरुकुलवास विना चारित्र न होय एम पंशाशक मांहे श्रीहरिभद्रसूरिये खासो के उत्तम नय के०न्याय कह्यो छे. यत:-"दंसण नाणचरितं, गुरुकुलवासंमि संगयं भणियं । अगुरुकुलवासियाणं, दुप्पडिलंभं खु एयमवि ॥१॥" तथा सिद्धांतमां पण पिंडविशुद्धियें चारित्रनी शुद्धि कहेवाय छे ते पिंडविशुद्धि तो जो गुरुकुलवास होय तो थाय ते मारे गुरुकुलवास विना चारित्र नहीं. यत:-"पिंडं असोह थतो, अचरिती इत्य संसओ नत्थि । चारिचमि असते, सव्वा दिख्का निरत्थिया ॥ ११॥ इति ॥५॥ नित्से गुरुकुल वासें वसवू, उत्तराध्ययने भाष्युरे। तेहने अपमाने वलौ तेहमां, पापश्रमणपणुं दाख्युरे ॥श्रीजिन०६॥ अर्थ-वली निरंतर गुरुकुलवासें वसवू एम श्रीउत्तराध्ययनसूत्रना अग्यारमा अध्ययने को छ. यतः-"वसे गुरुकुले निश्चं, जोगवं उवहाणवं । पियंकरे पियवाई, से सिक्ख लद्धमरोहई ॥१॥" इति वली तेहने के० ते गुरुने अपमाने के० अवज्ञा करे तो तेहने वली तेहमां के० ते उत्तराध्यनना सत्तरमा पापश्रमणिय अध्ययन मध्येज पापश्रमणपणुं देखाडयु छे एटले गुरु आदिकनी निंदा करतो होय तो तेहने पापश्रमण कहीये. यतः-"आयरियउवज्ञायाणं, सम्मं न पडिनप्पई । अप्पडिपूयए थद्धे, पावसमणेत्ति वुचई ॥ १॥" ते माटे गुरुकुले रहे. दस वैकालिक गुरु शुश्रूषा, तस निंदा फल दाख्यारे । आवंतिमां द्रहसम सद्गुरु, मुनिकुल मच्छसम भाष्यारे॥श्रीजिन०७॥
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy