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________________ (९२) महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी कृत. -उवसग्गे सम्म सहइ के० उपसर्ग सम्यग् रीते एटळे भली रीते-मकारे सहे छे. जाव अडियासेइ के० दीनता अणकरवे अहियासे छे. सकापुणाइ अज्जो के. हे आर्यो, विशेथे समर्थ था. समणेहिं निग्गंथेहिं के० श्रमण निग्रंथे, दुवालसंग के० द्वादशांगी, गणिपिडगं के० गणि जे आचार्य-तेनी पेटी. अहिज्झमाणेहिं के० भणते थके, दिव्वमाणुस तिरिरकोणिए उवसग्गे के देवता, मनुष्य अने तिर्यंच संबंधी उपसर्ग, सम्म सहितए के० सम्यग्रीते सहेवाने, जाव अहियासिचए के० यावत् अहियासवाने तओ के तेवारे. ते-बहवे समणा निग्गंथा के० ते घणा श्रमण निग्रंथ, निग्गंथीओ य के० साधवी एयमई विणएणं पडिमणेति के० ए अर्थ विनये करीने सांभले. एटले ए समुदाय अर्थ जे प्रभुजीए साधु साध्वीने कह्य जे श्रावक थकां उपसर्ग खमे छे तो तमे द्वादशांगी प्रमुखना भणनारा छो; माटे तमारे तो विशेषे उपसर्ग सहेवा इति भाव. एहमा एम कय जे, श्रावक वगर भण्या विना संवरवंता छे. इति तात्पर्याय. वएणं से कामदेवे के तेवार पछी ते कामदेव समणं भगवं पसिणाई पुच्छइ के० श्रमण भगवानने प्रश्न पूछे. इति सूत्रार्थ-वली उपासगदशांग मध्येज कुडकोलिया नामा भगवानना श्रावकनो अधिकार छे. यथा ॥-कुंडकोलियेवि समणे भगद महावीरे कुडकोलिय एवं क्यासी से नूणं कुंडकोलिया कल्लं तुम्मे पुन्वावरण्हकालसमयसि असोगवणियाए एगे देवे अंतिय पाउन्मवित्ता । वएणं से देवे णाममइंच वहेव जाव पाडगए । से नूगं कुंडकोलिया अछे समठे इंता अस्थि त धनो सिणं तुम जहा कामदेवे ॥व्याख्या-कुंडकोलिया के० हे कुंडकोलिया, एह आमंत्रण करीने समणे भगवं महावीरे के० श्रमण भगवान महावीर कुंडकोलियं के० कुंडकोलिया श्रावक प्रत्ये एवं वयासी के० एम कहेता हवा. से नूगं कुंडकोलिया के० हे कुंडकोलिया ! निश्चे कल्लं के० गइ काळे तुम्मे के तुजने पुन्वावरण्हकालसमयंसि के० मध्यान्ह समयने विषे असोगवणियाए के० अशोकवाडीने विषे एगे देवे अंतिय पाउभविता के० एक देवता प्रगट थयो. एणं से देवे के० तेवारे ते देवता णाममुदं च के० ताहरी नाममुद्रा तहेव जाव पडिगए के० तेमज यावत् गयो, एटले यावत् शद्ध एम सूचव्यु. नाम मुद्रा वन देवताए लीयां, प्रश्न पूछयो, तेना ते जवाव उत्तर करया. अनुक्रमे निपृष्ट व्याकरण करचे थके देवता पाछो गयो. से नूगं कुंडकोलिया के० ते निश्चे हे कुंडकोलिया, अहे समझे के०ए अर्थ साचो. हता अत्यि क० प्रभुजीने कहेछे. हे भगवन् सत्य, तं धन्नो सि गंतु केन्मभुजी कहे छे धन्य छो तमे जहा कामदेवे के० जेम पूर्व कामदेव कह्या छे तेम कहेवा. एटले साधुने वोलावीने प्रभुजीए कयु जे घरमा रह्या श्रावक पण एम करे छे तो तमे वो द्वादशागीना धरनारा छो. तमने विशेपे एम जोइए. इति जो श्रावक सूत्र भणता होत तो एम कहेत नहीं इतिभाव. ____ अहींयां कोइक एम कहेजे "द्वादशांगीना भणनारा कह्या छे. ते द्वादशांगी भणीन शके पण थोडं घणु भण्या होशे." तेहने उत्तर देछे-नवि आचारधरादिक ते कह्या के० आचारांगादिकना घरनारा श्रावक नयी कहा. एटले ए भाव जे ।। "अप्पेगइया आयार
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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