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________________ दोहसो गाया स्तवन (९३) धरा अप्पेगईया मूअगडधरा ॥" एम एकादगांगादि भणनारा साधु विवरीने उववाइ प्रमुखमां कया छे पण श्रावक नयी कया, तो तमे खोटी संभावना भी करो छो? मोटो एह विवेक के० ए श्रावक तथा साधुने विवेक वहेचण मोटो करयोछे. इति दशमी गाथार्थ ॥१०॥ __ अहीयां कोइकनी आशंका करीने उत्तरवाले छे. ते दुवक बोल्यो जे "उत्तराध्ययनमां पात्रकने कोविद कयो छे ते भण्या बिना कोबिद केम कहीए? तेहने उत्तर. उत्तराध्ययनेरे कोविद जे को ॥ श्रावक पालित चंप ।। ते प्रवचन निग्रंथ वचनथकी ।। अरथ विवेके अकंप ॥ स०॥ ११॥ अर्थ-उत्तराध्ययने के० उत्तराध्ययनने विषे कोविद जे कयों के कोविद एटले पंडित कह्यो छे. श्रावक पालित चंप के० चंपानगरीने विष पालित नामा श्रावकने कयो छे. यतः-"चंपाए पालिए नाये,सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवओ,सीसोसो उ महप्पणो ॥१" व्याख्या-चंपानगरीने विषे पालिए नाम सावए के० पालित नामा श्रावक थासि के होतो हवो. वाणिए के० वणिक जाति ते केवो छे ? महावीरस्स भगवओ सीसो के महावीर जे चोवीशमा परमेश्वर तेमनो शिष्य छे. महप्पणो के० ते वीर केवा छ ? महात्मा छे. मोटो छे आत्मा जेहनो इति. वली ते श्रावक को छे? ते कहे छे."निग्गथे पावयणे, यावर से वि कोविए । पोएण ववहरंत, पिहुँड नगरमागए ॥२॥" व्याख्या-निग्गथे पावयणे केनिग्रंथ संबंधी प्रवचन तेहने विष सावए के०ते श्रावक, कोविए के० पंडित छे. पोएण बवहरते के जिहां जे व्यापार करतो, पिदुई नगरमाग: के० पिहुंड नामा नगरने विषे आवतो हवो इति उत्तराध्ययने एकवीगने अध्ययने जे कोविद कह्यो छे ते प्रवचन निग्रंय के० निग्गंथे पाषयणे निग्रंथर्नु प्रवचन, वचनथकी के० एहज वचनथी जाणीए छैए जे प्रवचन भण्यानो संबंध ते निग्रंथनेज छे. अने श्रावकने कोविद कयो ते अरथ विवेके के० अर्थनी धारणाएज होय. अकंप के० अपकंप निश्चलपणे श्रावक लहान कया छे. पण लद्धमुत्ता कहींए पाठ नथी. वलो श्रावक कोविद कयो पण अघीत न करो तो एहमां गो संदेह आवे ? आज पण श्रावक मूत्र भण्या विना अर्य करीने घणा डाह्या दीसे छे. अहींयां वली दुहकमति वोल्यो के "उत्तराध्ययनमां को छ के, मूत्र भणतो सम्यक्स पामे, तेवारे मिथ्यात्वी चको भणे एम आव्यु " यतः-" जो मुत्तमहिजतो,एण ओगाइड उसम्मत् । अंगेण वाहिरेण वसो मुत्तइति नारयो॥१॥" व्याख्या-जो मुत्तमहिन्जतो के. जे मूत्र भणतो,सुएण ओगाइड उ सम्म के श्रुने करीने सम्यक्लने अवगाहे. अंगेण के. अंगे करीव के० अथवा वाहिरंग के अंगवाये करी, सोमुत्तत्ति नायब्बो के• ते मूत्ररुची जाणवो. इति उत्तराध्ययने अध्ययन अगवीशमे. हवे ए उचराध्ययननी गाथायी पण श्रावकने मूत्र भणवू नावे, जे माटे 'मूत्र भण्ये समकित अवगाहे ते पापड़ जल अवगाहे' ए दृष्टांत जागg. एटले जल छतुं छे तेहने अव तस्यच तथास.
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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