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श्रीमासयोः ॥ ४॥ कर्पूरस्वर्णयोश्चन्द्र उडारक्ष छदे दलः ॥ धर्मः स्वभावे रुचको भूषाभिन्मातुलिङ्गयोः ॥ ५॥ पाताले वाडवो वर्धः सीस आमलकः फले ॥ पिटजगल-138
सत्वानि पिटकामांसजन्तुषु ॥६॥ मधुपिण्डौ सुरातन्वोनाम शेवालमध्ययोः ॥ एकादात्रः समाहारे तथा मृतककूलको ॥ ७॥ वैनीतकभ्रमरको मरको वलीकवल्मीकवल्कपुलकाः फरकव्यलीको ॥ किंजल्ककल्कमणिकस्तवका वितङ्कवचेस्कचूचुकतडाकताकतङ्काः ॥८॥ वालकः फलकमालकालका मूलकस्तिलकपकपातकाः ॥ कोरकः करककन्दुकान्दुकानीकनिष्कचपका विशेषकः ॥९॥ शाटककण्टकटङ्कविटका मञ्चकमेचकनाकापनाकाः ॥ पुस्तकमस्तकमुस्तकशाका वर्णकमोदकमूषिकमुष्काः
ज्येठमासश्च ॥॥ कर्पूरे स्वर्णे च वाच्ये चन्द्रशब्द घुनघुसक ॥ चन्द्र चन्द्र कर्पूरम् स्वर्ण च ॥ उडौ नक्षत्रे वाच्ये नक्षशब्द पुनपुसफ ॥ ऋक्ष ऋक्ष भम् ॥ उदे पणे वाच्ये दलशब्द पुनपुसक ॥ दल. दल द ॥ स्वभावे स्वरूपे वाच्ये धर्मशब्द पुनपुसक ॥ धर्म धर्म स्वभाव ॥ अन्यत्र तु पुण्योपाये सीवव्यमुक्तम् ॥ अन्यत्र तु पुंलिङ्ग एव ॥ भूपाभिदि अवेयके मातुलिने च बीजपूरे वाच्ये रुचक नपुसक ॥ रुचक रुचक अवेयक बीजपूर च । सौवर्चले चन्दनपेपण्या शिलाया च सीब ॥ ५॥ पाताले वाच्ये वाडवशब्द पुनपुंसक ॥ वाढव वाडव पातालम् ॥ क सीसे सीसके पाये ॥ फले वाच्ये आमलक नपुसक ॥ आमलक आमलकम् फलम् ॥ पिटकाल्ये भाजनविशेपे मासे जन्ती च यथासण्य पिटजालसत्वा पुनपुसका ॥ पिट IE पिटम् पिटका । अन्यत्र छदी आकर्षफले च प्रतिपदपाठानपुसकत्वम् ॥ जगल जालम् मासम् । जगलो निर्जले देशे निलिश पिशितेऽसियाम् ॥ सत्व सत्व जन्तु । जन्तुविशेषोऽपि जन्तु । तेन पिशाचादावपि पुनपुसकत्वम् ॥ उपलक्षणत्याद्गुणप्राणयोरपि । अन्यत्र तु गीय ॥६॥ सुराया मृबीकामये तनौ च वाच्याया मधुपिण्डशब्दी पुनपुसकी ॥ अव मधु इद मधु सुरा । अय ERY पिण्ड इद पिण्ड तनु ॥ शेवालमध्ययोनाम पुनपुंसकम् ॥ शेवाल शेवालम् । शेवल शेवलमित्यादि । मध्य मध्य मध्यम मध्यमम् अवलन अवलमम् विलम विलमम् इत्यादि ॥ रात्र । इति कृतसमासान्तो राशिशब्दो गृयते स एकशब्दात्पर पुनपुसक ॥ असमाहारार्थ वचनम् ॥ एका चासो रात्रिश्च एकरात्र एकरात्रम् ॥ समाहारे द्विगुसमाहारो द्वसमाहारथ गृह्यते तस्मिन् । वर्तमानो यो रात्रशब्द स पुनपुंसक || रात्री समाते द्विराव द्विरात्रम् ॥ एव त्रिरात्र त्रिरावमित्यादि ॥ द्वहसमाहारे, अहश्च रात्रिश्च अहोरात्र. अहोरात्रम् ॥ समाहार इति किम् । पूर्वो रानेरश पूर्वरान ॥ अथ कान्ता १९ ॥ सूतक सूतक पारद ॥ फूलक कूलकम् स्तुप ॥ ॥ वैनीतक वैनीतकम् परपरावास याप्ययानादि ॥ प्रभरक अमरक ललाटस्थोडलक || मरक मरकम् बहुमाणिमरणम् ॥ वलीक वलीक नीत्रम् ॥ वल्मीक वल्मीक पिपीरि कादिकृतो मृसंचय ॥ वल्क चल्कम् तरुत्वक् ।। पुलक पुलक रोमाज । फरक फरकं खेटक ॥ रलयारेक्येन फलकमपि ॥ व्यलोक. व्यलोकमप्रियमकार्यच ॥ किल्क किल्क केसरम् ॥ कल्क कल्क कषाय तिलादे. खलच ॥ मणिक मणिकमलिअर ॥ स्तवक स्तवक गुच्छक ॥ वितक वितङ्कम् | | आरोग्यम् ॥ वरक वरकमवस्कर ॥ चूचक चूचक कचापम् ॥ तपाक तडार्क सर । तटाक तटाक तदेव ॥ अर्थप्राधान्यात्ततागोऽपि ॥ तह तहम् आता ॥ 6 ॥ बालक २ परि-22 | हार्यमालयिक च ।। फलक फलकं खेटकम् ॥ तदन्तत्वात् शालिफलकोऽपि अष्टापद ॥ मालक मालक आमान्तराटवी ॥ अलक अलक चूर्णकुन्तल ॥ मूलक मूलक शाकविशेष ॥ तिलक ति-20 लक पुण्ड ॥ पढ़ पा कर्दम पाप च ॥ पातक पातक पापम् ॥ कोरक कोरकम् कुड्मलम् ।। अर्थप्राधान्यात् क्षारकोऽपि ॥ करक करक कमण्डलु करतश्च ॥ कन्दुक कन्दुक गिरि ॥ अन्दुक अन्दुकं गजपाद बन्धनम् ॥ अनीक अनीक युद्ध सेना च ॥ निष्क निष्क हेम्ग अष्टोत्तर शत पल कप हे उरोभूपर्ण दीनारश्च ॥ चपक चपक मद्यपानभाजनम् ।। विशेषक विशेषक तिलक ॥९॥ शाटक शाटकं वसविशेष ॥ कण्टक कण्टक रोमाञ्च वृक्षभेदी च ।। दक्ष पापाणादिच्छेदोपकरण गिरिशन च ॥ विटङ्क चिट, कपोतपालीसज्ञ पक्षिविनामार्य बहिनिगत दारु,